SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 247
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-९५ २३९ 10 'धर्मबिन्दु' वैसे तो पूरा ग्रंथ ही जीवन-उपयोगी मार्गदर्शन - ' के लिए ही है....इसमें भी इसका पहला अध्याय तो गृहस्थ जीवन के लिए मार्गदर्शन-गाइड का काम करता है। ० हालाँकि 'धर्मबिन्दु' की बातों को लेकर सोचें तो आज के समाज की स्थिति इससे बिल्कुल विपरीत नजर आयेगी। अनेक कारण हैं इसके, पर सबसे महत्त्वपूर्ण कारण है : व्यवहार धर्म की अक्षम्य उपेक्षा! ० कुछ लोग ऐसे भी हैं इस दुनिया में जो भगवान का उपकार कभी नहीं मानते... बस अपनी डफली लेकर अपना राग आलापते रहते हैं! ० एकाग्रता, तल्लीनता, धर्मश्रवण एवं चिंतन के लिए अनिवार्य गुण है। ० परमात्मा के दर्शन करें... सम्यक् दर्शन करें... वह दर्शन दिल में शरणागति का भाव पैदा करेगा। ० अपन को तो अपना फर्ज अदा करना है... कोई माने या ना माने! परमात्मा की आज्ञा है अपने पास आनेवालों को समुचित मार्गदर्शन देना। मैंने तो उसी आज्ञा को सर पर रखते हुए ये सारे प्रवचन दिये हैं! • प्रवचन : ९६ परम कृपानिधि, महान् श्रुतधर आचार्यश्री हरिभद्रसूरीश्वरजी ने अपने जीवनकाल में १४४४ ग्रंथों की रचना की थी। अपना समग्र जीवन उन्होंने ज्ञानोपासना में ही बिता दिया था। उनका एक-एक ग्रंथ जिनवचनों को विशद् और सुबोध करनेवाला है। आप चार महीने से जिस ग्रंथ पर प्रवचन सुन रहे हो, वह 'धर्मबिंदु' ग्रंथ कितना रोचक, बोधक और मर्मस्पर्शी है, यह आप समझे होंगे। हालाँकि चातुर्मास में केवल पहले अध्याय पर ही विवेचन कर पाया हूँ| शेष अध्यायों पर विवेचन करने की मेरी भावना है, परन्तु क्या पता वह भावना कब और कहाँ फलवती होगी। यह प्रथम अध्याय सचमुच गृहस्थ जीवन की 'गाइडलाइन' है। गृहस्थ जीवन की एक-एक बात को लेकर ग्रंथकार ने समुचित For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy