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प्रवचन-९४
२२८ ग्रंथकार ने 'अनिन्दित सुख' की प्राप्ति की बात बड़ी महत्त्वपूर्ण कही है। सामान्य धर्मों का पालन करने से गृहस्थ को अनिन्दित सुख की प्राप्ति होने की बात बड़ी महत्त्वपूर्ण है। अनिन्दित सुख कैसे होते हैं यह बात पहले बता दी है। इसलिए फिर से वह बात नहीं कहता हूँ | बुद्धिमत्ता इसी में है कि आप लोग सामान्य धर्मों का पालन दृढ़ता से करें ।
बदली हुई समाज-व्यवस्था में, मैं जानता हूँ कि सामान्य धर्मों का पालन करना सरल नहीं है, फिर भी पालन करना अनिवार्य है। दृढ़ मनोबल से मुश्किल कार्य भी सरल बन जाता है। आप अपना मनोबल बढ़ाइये | मनोबल बढ़ाने के लिए दो उपाय अपना लें :
१. सत्समागम और २. स्वाध्याय।
सत्पुरुषों के समागम से आपका निर्बल मन बलवान् होगा। निःसत्त्व मन सत्त्वशील बनेगा। बात बात में भयभीत होनेवाला मन निर्भय बनेगा। सत्पुरुषों के समागम से जीवन-परिवर्तन करनेवाले ऐसे स्त्री-पुरुष हमने देखे हैं कि जिन्होंने
० परनिंदा छोड़ दी, गुणानुवाद करनेवाले बने। ० दुर्जनों का संग छोड़ दिया, सज्जनों का संग करने लगे। ० पापस्थानों में जाना छोड़ दिया, धर्मस्थानों में जाने लगे। ० दुराचारों का त्याग कर दिया, सदाचारों का पालन करने लगे। ० माता-पिता के प्रति विनयपूर्वक व्यवहार करने लगे। ऐसे अनेक परिवर्तन हमने देखे हैं। वैसे, अच्छे धर्मग्रंथों के स्वाध्याय से, अध्ययन से भी जीवन में सुधार होता है। मनोबल बढ़ता है न! सतत, नियमित स्वाध्याय करने से मन निर्मल होता है और बलवान् होता है।
गृहस्थ जीवन को मात्र अर्थ-काम का जीवन मत बनाओ। अर्थ-काम तो मात्र साधन हैं, उसका इस्तेमाल साधन के रूप में ही करना है। मुख्य तो धर्मपुरुषार्थ करना है। अनंत अनंत कर्मों से बंधी हुई आत्मा को बंधनों से मुक्त करने का पुरुषार्थ करना है। यदि अर्थपुरुषार्थ में और कामपुरुषार्थ में उलझ गये तो धर्मपुरुषार्थ नहीं कर पायेंगे, मनुष्य जीवन व्यर्थ चला जायेगा।
शान्त चित्त से सोचोगे तो ही यह बात मन में जंचेगी। चूंकि शान्त चित्त ही पारलौकिक दृष्टि से चिन्तन कर सकता है। शान्त चित्त ही आत्माभिमुख बन सकता है। थोड़े क्षणों के लिए चित्त को क्रोध-मान-माया और लोभ से मुक्त रखें, चित्त शान्त होगा और आप शुभ विचारधारा में बह सकोगे।
आज बस, इतना ही।
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