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प्रवचन-९१
१८६ 10 ४५ आगमों की पूजा पढ़ानेवालों को ४५ आगम के नाम
तक याद नहीं हैं! हमने केवल क्रियाओं के डिब्बों को पकड़ व रखा है... भीतर की भावनाओं का जौहरात पूरा का पूरा
गायब है, इसका हमें पता ही नहीं है! ० जिज्ञासा और कौतूहल में अंतर है... जिज्ञासा गतिशील रहती है, जिज्ञासा तो ज्ञान की जननी है - ज्ञान का त्द द्वत्दद्य है। जिज्ञासा बढ़ाइये, पर कौतूहल से बचिये। कौतूहल आपके व्यक्तित्व को उथला बना देगा। जिज्ञासा आपको ऊँचाई प्रदान करेगी। ० आपको शायद मालूम नहीं होगा... एक जर्मन विद्वान् ने
४५ आगमों पर 'रिसर्च' करके महानिबंध लिखा है। 'अभिधान चिंतामणि' और 'कल्पसूत्र' जैसे ग्रन्थ सबसे पहले जर्मनी
में मुद्रित हुए। ० गीतार्थ साधु समय के पारखी होते हैं। उन्हें मालूम होता है
कब, किसको, क्या और कितना उपदेश देना? हर एक पर उपदेश की झड़ी नहीं बरसाई जाती!
र प्रवचन : ९१
परम उपकारी, महान् श्रुतधर आचार्यदेवश्री हरिभद्रसूरीश्वरजी स्वरचित 'धर्मबिंदु' ग्रंथ के प्रथम अध्याय में, गृहस्थ जीवन के सामान्य धर्म बता रहे हैं। आज मैं आपको अन्तिम सामान्य धर्म 'ऊहा-अपोहादियोग' यानी 'बुद्धि के आठ गुण' बताऊँगा। _ हालाँकि सामान्य धर्मों की संख्या ३५ है, परन्तु अपन ने अजीर्ण में भोजनत्याग एवं 'बलापाये प्रतिक्रिया' इन दो सामान्य धर्मों का समावेश 'प्रकृति-अनुकूल भोजन' में कर दिया है। इसी वजह से सामान्य धर्मों की संख्या ३३ हुई है।
गृहस्थ में बुद्धिमत्ता होना बहुत ही आवश्यक है। केवल बुद्धि होना पर्याप्त नहीं है, बुद्धिमत्ता होनी चाहिए | बुद्धि का काम विचार करने का है, सही विचार या गलत विचार | जबकि बुद्धिमत्ता का अर्थ होता है सही दिशा में विचार करना।
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