SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 191
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-९० १८३ किसी व्यक्ति में आपने सौजन्य देखा, किसी में दाक्षिण्य देखा, किसी में औदार्य देखा, किसी में स्थैर्य देखा, किसी में प्रिय वचन का गुण देखा... आप उसकी प्रशंसा करें। हार्दिक प्रशंसा करें। उस व्यक्ति के सामने प्रशंसा करना उचित नहीं लगता हो तो दूसरों के सामने अवसरोचित प्रशंसा करते रहो। संस्कारों के लिए जीना सीखो : रवीन्द्रनाथ टेगौर का नाम तो आपने सुना ही होगा। उनके पिताजी देवेन्द्रनाथ टेगौर की एक घटना है। इस घटना से आपको 'सौजन्य' गुण किसको कहते हैं, वह मालूम होगा। देवेन्द्रनाथ के पिताजी द्वारकानाथ ठाकुर कलकत्ता के प्रसिद्ध व्यापारी व जमीनदार थे। वे व्यवहारदक्ष पुरुष थे। उन्होंने अपने जीवनकाल में, वंशपरंपरागत संपत्ति का एक अलग ट्रस्ट कर दिया था। द्वारकानाथ की मृत्यु हुई। उनकी व्यापारी पेढ़ी में ३० लाख रुपये का नुकसान था। पेढ़ी का मैनेजर, जो कि एक अंग्रेज था, उसके लेनदारों को एक साथ बुलाकर कहा : 'हमारी पेढ़ी का कर्जा एक करोड़ रुपये हैं, जबकि लेना ७० लाख रुपया है। ३० लाख रुपयों का नुकसान है। पेढ़ी के मालिक, अपनी पूरी संपत्ति... जमीन वगैरह बेचकर भी कर्जा चुकाना चाहते हैं। आप लोग पेढ़ी का लेना-देना सम्हालो। जमीनदारी के हक भी ले लो और अपनाअपना जो लेना है, ले लो। परन्तु एक ट्रस्ट की जो संपत्ति है, उस पर आपका अधिकार नहीं होगा।' देवेन्द्रनाथ वहाँ उपस्थित थे। भारतीय संस्कृति के संस्कार गये नहीं थे। 'मेरे धर्म की आज्ञा है कि जो सुपुत्र होता है वह पिता के ऋण को चुकाता है। मुझे भी पिताजी का कर्जा चुकाना ही चाहिए।' उन्होंने लेनदारों से कहा : 'आपको गॉर्डन साहब ने कहा कि हमारी ट्रस्ट की संपत्ति पर आप अधिकार नहीं कर सकेंगे, वह बात कानून से तो ठीक है, फिर भी हम उस ट्रस्ट को खत्म करके, वह संपत्ति भी आप लोगों को देने के लिए तैयार हैं। पितृऋण से हमें मुक्त होना है।' लेनदार लोग, देवेन्द्रनाथ की बात सुनकर स्तब्ध रह गये। ३० साल के युवक देवेन्द्रनाथ की आदर्श निष्ठा से अत्यन्त प्रभावित हुए। कुछ लेनदारों की आँखों में से आँसू बहने लगे। देवेन्द्रनाथ के सौजन्य ने, लेनदारों में भी सौजन्य का दीपक जला दिया। लेनदारों ने देवेन्द्रनाथ की संपत्ति का नीलाम नहीं किया, परन्तु पेढ़ी का कारोबार अपने हाथ में लेकर पेढ़ी को व्यवस्थित For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy