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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-८८ १६२ सहानुभूति बतानेवाले लोगों ने उनसे पूछा : 'आपको जिस व्यक्ति पर शक हो, आप बताइयेगा...हम उसको ऐसी शिक्षा देंगे...कि दूसरी बार ऐसा कुकर्म करने को जिंदा ही नहीं रहे ।' __ भगवानदास ने कहा : 'भाइयो! क्यों उस व्यक्ति के लिए ऐसा सोचते हो? उसको आज कितनी खुशी हुई होगी? कितने दिनों से वह आग लगाने का सोचता होगा? आज उसकी इच्छा पूर्ण हुई... उसको कोई सजा नहीं करना है... भगवान् मेरी परीक्षा ले रहा है। मुझे उनकी परीक्षा में उत्तीर्ण होना है। अपराधी को भी जो क्षमा देता है... वह भगवान की परीक्षा में उत्तीर्ण होता है।' जिस व्यक्ति ने अभिनिवेश में आकर यह दुष्ट कार्य किया था, उस व्यक्ति ने वहाँ ही भगवानदास के चरणों में गिर कर क्षमा मांगी। उसको अपने अन्यायपूर्ण कुकृत्य करने का घोर पश्चात्ताप हुआ। भगवानदास बसु का अभिनिवेश का त्याग कैसा अद्भुत था। उन्होंने घर जलानेवाले को कहा : 'भाई, तू तेरे घर में चला जा। किसी को भी कहना मत कि 'मैंने घर जलाया है...' अन्यथा ये लोग तेरी हत्या कर देंगे। मेरा घर जल जाने से मुझे दुःख नहीं है...चूँकि घर को कभी मैंने मेरा माना ही नहीं था...। तुझे कोई कष्ट होगा तो मुझे दुःख होगा।' यदि भगवानदास चाहते तो लोगों के सामने उसका पराभव कर सकते थे। उसकी हत्या भी करवा सकते थे... अथवा पुलिस के सुपुर्द कर सकते थे। परन्तु उनके स्वभाव में ही ऐसी बातें नहीं थी। __सभा में से : हम लोग तो ऐसा सोचते हैं कि अपराधी को सजा नहीं देते हैं तो वह पुनः पुनः अपराध करता है। सजा, कौन किसे करेगा? __ महाराजश्री : सजा करनेवाले आप कौन होते हैं? जरा दिमाग से सोचो। दूसरों को सजा करने जाते हो... आप स्वयं दंडित होते हो । अपराध करनेवाले के संयोग-परिस्थिति का अध्ययन किया, कभी? वह क्यों अपराधी बना? अपराधियों का हृदय-परिवर्तन करने का प्रयत्न करना होगा। उस प्रयत्न में आपको कुछ त्याग करना पड़ेगा, कुछ सहन भी करना पड़ेगा। परन्तु...एक दिन उसका हृदय-परिवर्तन होगा अवश्य। कभी सौ व्यक्तियों में से ५-१० व्यक्तियों का परिवर्तन न भी हुआ...तो निराश होने की जरूरत नहीं है। सौ में से ९० व्यक्तियों का हृदय-परिवर्तन होता है तो बहुत बड़ी सफलता है। For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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