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प्रवचन-८७
१५४ अभिमान है। अभिमान को हृदय में लिए वे वहाँ बारह वर्ष तक खड़े रहे! शीत में, धूप में और वर्षा में... न भोजन, न पानी... कुछ भी नहीं। फिर भी केवलज्ञान नहीं हुआ उनको। __जब साध्वी ब्राह्मी और साध्वी सुन्दरी ने आकर बाहुबली को कहा : 'हमारे भैया, अब तो हाथी से नीचे उतर जाइये...!' बाहुबली ने सुना और चिन्तन शुरू हुआ : 'क्या मैं हाथी पर खड़ा हूँ? नहीं, नहीं, मैं तो जमीन पर खड़ा हूँ... तो फिर ये साध्वी मुझे हाथी पर से नीचे उतरने को क्यों कह रही है? ये तो सत्यवचना साध्वी है। ओ हो.... समझ गया मैं | मान-अभिमान ही तो हाथी है। मैं अभिमान के हाथी पर बैठा हूँ...। मुझे अभिमान छोड़ना चाहिए....| सच कहा साध्वी ने! मेरी आँखें खोल दीं। कौन छोटा और कौन बड़ा? मेरे ९८ भाई केवलज्ञानी हैं... वे मेरे से बड़े हैं....। मैं अभी चलता हूँ और जाकर भाइयों को वंदना करूँगा...' ___ ज्यों ही उन्होंने कदम उठाया... उनको केवलज्ञान हो गया! वे सर्वज्ञवीतराग हो गये! विधेयात्मक चिन्तन का यह परिणाम था। इसलिए ज्ञानी पुरुष कहते हैं कि धर्मश्रवण के बाद धर्मचिंतन करते रहो। ____धर्मचिंतन-विधेयात्मक चिंतन तभी हो सकेगा, जब आप पूर्वाग्रहों से, दुराग्रहों से और हठाग्रहों से मुक्त होंगे। जो मनुष्य पूर्वाग्रहों से बद्ध होता है या दुराग्रहों से ग्रस्त होता है, वह जो कुछ भी सुनेगा, उस पर अपने आग्रहों के माध्यम से ही सोचेगा। सत्य के माध्यम से वह नहीं सोच पायेगा | पूर्वाग्रही मनुष्य कितने ही वर्ष तक धर्मश्रवण करता रहे, तीर्थंकर के मुख से धर्मोपदेश क्यों न सुनता हो - वह कभी भी विधेयात्मक चिंतन नहीं कर पायेगा। उसकी आत्मा का शुद्धीकरण हो ही नहीं सकता। श्रमण भगवान महावीरस्वामी के समवसरण में ऐसे पूर्वाग्रही अनेक विद्वान आते थे। वे सुनते थे, एकाग्रता से सुनते थे, महावीर की वाणी बहुत अच्छी-प्रिय लगती थी, परन्तु उन लोगों का चिंतन महावीर से विपरीत ही होता था! चूंकि वे पूर्वाग्रही थे। सभी सुनने के लिए नहीं आते! : ___ महाराजश्री : महावीर क्या कहते हैं? कैसे तर्क देते हैं? कैसे उदाहरण देते हैं.... यह सब जानने के लिए आते थे। और, महावीर की विभूति देखने का भी आकर्षण होगा। आते तो थे, पाते कुछ नहीं थे। आज भी ऐसे श्रोता होते हैं, देखे हैं मैंने । वे कुछ पाने को नहीं आते, केवल मनोरंजन के लिए आते
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