________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रवचन-८६
१४५ सीमा का बंधन नहीं है। ज्ञान निःसीम है। हाँ, चिन्तन की दिशा सही होनी चाहिए | स्वस्थ और सही दृष्टिकोण होना चाहिए | चाहे चिंतन निषेधात्मक हो या विधेयात्मक, दृष्टिकोण सही और स्वस्थ होना चाहिए। ___ एकान्त मान्यताओं के लोह-पिंजड़े में रहा हुआ मनुष्य कभी भी स्वस्थ और सही चिन्तन नहीं कर सकता। परम सत्य को नहीं पा सकता है। __चिन्तन करने के लिए मन की एकाग्रता भी अपेक्षित है। मन का स्वभाव चंचल है। परन्तु वह चंचलता अपरिहार्य नहीं है। चंचलता अभ्यास से मिटायी जा सकती है। मन को अभिप्रेत विषय में चिन्तनकार्य करने को नियन्त्रित किया जा सकता है, विवश किया जा सकता है। अभ्यास-काल में पुनः पुनः वह चंचल बनता रहेगा, परन्तु निरन्तर अभ्यास से वह स्थिर और एकाग्र अवश्य बनेगा। ___ मन की स्वाभाविक रुग्ण अभिरुचियों को भी बदलना होगा। नयी नीरोगी एवं निर्मल अभिरुचियाँ पैदा करनी होगी। प्रतिदिन धर्मप्रवचनों का श्रवण करने से मन को नयी नयी बातें मिलेंगी और उसका चयन अच्छा बनता जायेगा। __ श्रवण के बाद चिन्तन की भूमिका तो बनानी ही पड़ेगी। अन्यथा श्रवण कुछ विशेष महत्त्व नहीं रखता है। श्रवण और चिन्तन के विषय में विशेष बातें आगे कहूँगा।
आज बस, इतना ही।
For Private And Personal Use Only