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प्रवचन-८६
० आप दान नहीं दे रहे हैं, दूसरे लोग तो दान देते हैं, उनकी आप प्रशंसा करो।
० आप ब्रह्मचर्य का पालन नहीं कर रहे हैं, दूसरे जो कर रहे हैं, आप उनकी प्रशंसा करो।
० आप जिनमंदिर में जाकर परमात्मपूजा नहीं कर रहे हैं, दूसरे जो करते हैं, उनकी आप प्रशंसा करो।
० आप तपश्चर्या नहीं कर रहे हैं, दूसरे जो कर रहे हैं, आप उनकी प्रशंसा करो।
० आप क्रोध को रोक नहीं सकते हैं, जो रोकते हैं और क्षमा करते हैं, उनकी प्रशंसा करो।
० आप अभिमान नहीं छोड़ सकते हैं, जो छोड़ सकते हैं, उनकी आप प्रशंसा करो।
० आप चारित्र्य-धर्म स्वीकार नहीं कर सकते हैं, जो करते हैं उनकी आप प्रशंसा करो।
० आप साधुसेवा नहीं कर सकते हैं, जो करते हैं उनकी आप प्रशंसा करो।
० आप धन-संपत्ति की ममता का त्याग नहीं कर सकते हैं, जो करते हैं उनकी आप प्रशंसा करो। सहयोगी बनकर धर्म करो : ___ मात्र प्रशंसा नहीं, अवसर आने पर सेवा भी करते रहो। यदि यह बात आपके घर में शुरू कर दी, तो घर का वातावरण बदल जायेगा। सब एकदूसरे की प्रशंसा करने लगेंगे। तो फिर झगड़े होने की तो बात नहीं रहेगी। जो व्यक्ति धर्मआराधना करता है, उसकी प्रशंसा करो। जो आराधना नहीं करता है, उसकी निन्दा मत करो। आप जो धर्मआराधना नहीं कर रहे हो, दूसरा व्यक्ति कर रहा है, उसका अवमूल्यन मत किया करो। जैसे-आप तपश्चर्या नहीं करते हैं, आपकी धर्मपत्नी तपश्चर्या करती है, तो आप तपश्चर्या का अवमूल्यन मत करें। 'तपश्चर्या करने से क्या? मैं तप करने में नहीं मानता... शरीर को कष्ट क्यों देना? तप करने से ही क्या मोक्ष मिल जाता है?....' ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए | आजकल लोगों का कुछ ऐसा ही रवैया बन गया है। जो अच्छा कार्य मनुष्य स्वयं नहीं करता है, दूसरा करता है...
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