________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रवचन-८५
१२८ ___ अंकमाल स्तब्ध रह गया। उसके दिमाग में सभी घटनाएँ उभर आयीं। वह लज्जित हो गया... और उसी दिन से वह आत्म-कल्याण की आराधना में निरत हो गया। ___ धर्मोपदेशक बनने की योग्यता कैसी होनी चाहिए, आप लोग समझे न? धर्मोपदेशक क्रोधविजेता होना चाहिए, धर्मोपदेशक लोभविजेता होना चाहिए
और धर्मोपदेशक कामविजेता होना चाहिए | जो स्वयं क्रोध, लोभ और कामवासना से पराजित होगा, वह दूसरों को क्या देगा? उसका धर्मोपदेश दूसरों के हृदय तक कैसे पहुँचेगा? कहने का तात्पर्य यह है कि धर्मोपदेशक संयमी होना चाहिए | उसका लक्ष्य भी संसार के जीवों को संयमी-आत्मसंयमी बनाने का होना चाहिए। आन्तरिक शत्रुओं पर विजय पाये बिना कभी भी आत्मकल्याण हो नहीं सकता, कभी भी आत्मविशुद्धि नहीं हो सकती। इसलिए तो हमारे आराध्यदेव 'जिन' हैं! 'जिन' का अर्थ होता है विजेता। जिन्होंने अपने सभी आन्तरिक शत्रुओं को जीत लिया - वे 'जिन' कहलाते हैं। हमें भी कभी न कभी 'जिन' बनना ही होगा। पूर्ण सुख, पूर्णानन्द 'जिन' ही अनुभव करते हैं। वक्ता के १४ गुण : ___ धर्मोपदेशक को पहचानना होगा। 'बहुत अच्छा बोलता है, वक्तृत्व शक्ति श्रेष्ठ है...' इतने मात्र से कोई व्यक्ति धर्मोपदेशक नहीं बन सकता है। उसमें १४ प्रकार की योग्यता होनी चाहिए। एक विद्वान महर्षि ने कहा है
वाग्मी-व्यास समसवित् प्रियकथा प्रस्ताववित् सत्यवाक्, संदेहच्छिद् शेषशास्त्रनिपुणो, नाख्याति व्याक्षेपकृत् । अव्यंगो जनरंजको जितसभो, नाहंकृतो धार्मिकः,
संतोषी च इमे चर्तुदशगुणा वक्तुः प्रणीतास्तथा ।। जिस धर्मोपदेशक से प्रतिदिन धर्मशास्त्र को सुनना है और मोक्षमार्ग पर चलना है, उस धर्मोपदेशक को परखना तो पड़ेगा न? अथवा जिसको धर्मोपदेशक बनना है, उसको भी ज्ञान होना चाहिए कि 'मैं धर्मोपदेशक कैसे बन सकता हूँ।'
पहले मैं १४ गुणों के नाम बता दूं -
For Private And Personal Use Only