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प्रवचन-८५
१२५ 60 प्रतिदिन धर्मश्रवण करना चाहिए यह कर्तव्य है, सामान्य = धर्म है... पर किससे करना? यह बात भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण
हा
B० किताबी ज्ञान देना या तर्क-दलील और कहानी किस्से
सुनाकर मनोरंजन करना अलग बात है और धर्म की बातों
को व्यक्ति के अन्तस्तल तक पहुँचाना और बात है। ० धर्मोपदेश के लिए शास्त्रों में चौदह विशेषताएँ बतायी गई हैं।
वे हों तो ही धर्म का उपदेश सार्थक बनेगा। ० मनोरंजन के उद्देश्य से धर्म का उपदेश नहीं सुना जाता है...
नहीं दिया जाता है। धर्मोपदेश सुनकर आत्म-संशोधन करना
है... मनोमंथन करना है। ०सभा में उपस्थित लोगों के स्तर को जाँच-परख कर उपदेश
देने से वक्ता एवं श्रोता दोनों को लाभ होता है। ० हमारे लिए तो धर्मोपदेश देना यह उपकार नहीं वरन् कर्तव्य
बताया गया है। हम आप पर उपकार नहीं करते... हम तो केवल हमारा फर्ज अदा करते हैं।
प्रवचन : ८५
परम कृपानिधि, महान् श्रुतधर आचार्यश्री हरिभद्रसूरिजी, स्वरचित 'धर्मबिंदु' ग्रन्थ में सर्व प्रथम गृहस्थ जीवन के सामान्य धर्मों का प्रतिपादन करते हैं। हर गृहस्थ के लिए ये सामान्य धर्म-सामान्य गुण उपयोगी हैं। जिस किसी को अपनी जीवनयात्रा मंगलमय बनानी हो, कल्याणमय बनानी हो, उन सभी महानुभावों के लिए यह आचार-विचारसंहिता अत्यंत आदरणीय है। ___ आज एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण सामान्य धर्म बताना चाहता हूँ, वह सामान्य धर्म है प्रतिदिन धर्मश्रवण । प्रतिदिन धर्मग्रंथ का श्रवण करना। धर्मग्रंथ को सुनने की बात की है ग्रंथकार ने! सुनने की क्रिया सापेक्ष है। कोई सुनाने वाला हो तो सुना जा सकता है। धर्मग्रंथ को सुनना जितना आवश्यक है, उससे भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण है धर्मग्रंथ किससे सुनना! हर किसी शास्त्रज्ञ से धर्मशास्त्र नहीं सुनना चाहिए। धर्मशास्त्र सुनानेवाला व्यक्ति कैसा होना चाहिए - इस
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