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प्रवचन-५४ लगा। गणेश ने एक बड़ा पत्थर उठाया और मासूम बच्चे पर दे मारा | एक भयानक दर्दभरी चीख निकली और बच्चे के प्राण निकल गये। तुरन्त वहाँ एक खड्डा खोदकर, लड़के के मृतदेह को दफना दिया और दोनों चलकर मेइन रोड़ पर पहुँच गये। वहाँ से टैक्सी पकड़ ली और पहुँचे अपने मकान पर | शाम हो गई थी। ___ उधर नीला, एक बजे तक मुन्ना घर पर नहीं आया तब घबरा गई और स्कूल पहुँची। स्कूल से तो सभी बच्चे चले गये थे। नीला ने मुन्ने के दोस्तों के घर पर तलाश की....कहीं पर भी मुन्ना नहीं मिला....तब पुलिस स्टेशन जाकर शिकायत लिखवा दी। मुन्ने का फोटो भी दे दिया।
नीला घर पर आई और फूट-फूट कर रोने लगी। उसके मन में अनेक प्रकार की शंका-कुशंकाएँ पैदा हो रही थीं। उसमें एक शंका यह भी थी : 'क्या गणेश तो मुन्ने को उठा कर नहीं ले गया होगा? आज सुबह नौ बजे से गणेश भी घर आया नहीं है, क्या उसने तो मुन्ने को...!!' नीला काँप उठी।
शाम को जैसे ही गणेश घर पर आया । नीला ने पूछा : 'आज तू सुबह से कहाँ गया था? बता, मुन्ना कहाँ है? मेरा मुन्ना कहाँ है?' और नीला फूट-फूट कर रोने लगी। गणेश जवाब बराबर नहीं दे सका। उसने कहा : 'मेरे मित्र के साथ आज तो मैं घूमने गया था, फिर 'पिक्चर' देखने गये थे।' नीला ने कहा : 'कहाँ है तेरा वह मित्र?' उसने कहा : 'नीचे खड़ा है।' नीला गणेश को लेकर नीचे आई। वह ऐंग्लो-इन्डियन नीचे खड़ा ही था। नीला की रोती आँखें....रोती सूरत देखकर वह लड़खड़ा गया। नीला ने उससे पूछा : 'भैया, सच-सच बताना, तुम कहाँ गये थे?' उसने दूसरी ही बात बताई....| नीला की शंका पक्की हो गई। उसने फ्लेट में आकर पुलिस स्टेशन पर फोन किया। आधे घंटे में पुलिस की गाड़ी आई। इधर दोनो मित्रों को नीला ने चाय-नाश्ता करने बिठा दिया था। पुलिस ने आकर दोनों को ‘एरेस्ट' कर लिया। गाड़ी में बिठाकर ले गये। ऐन्ग्लो -इन्डियन ताज का साक्षी बन गया। गणेश को फाँसी की सजा हो गई।
नीला ने पुत्र और प्रेमी दोनों को खो दिया। साधुओं के लिए भी स्थान की पसंदगी अनिवार्य :
घर कहाँ पर होना चाहिए, यह बात बड़ी महत्त्व की है। हम लोग तो साधु हैं न? हमारे लिए भी तीर्थंकरदेवों ने नियम बनाये हैं कि हमें कहाँ पर रहना
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