SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६ प्रवचन-५३ गुणीजनों के साथ संबंध गाढ बनाये रखना चाहिए। .तुम यदि गुणवान होओगे तो ही दुनिया के दिल में स्थान जमा सकोगे। जो सहृदय नहीं होता है वह कभी महान् नहीं हो सकता है! • कृतज्ञता की कोख में समर्पणभाव पैदा होता है.... पलता है । और पुष्ट बनता है। दानी, तपस्वी इत्यादि गुणीजनों का बहुमान करके गुणों का प्रसार करना चाहिए। दोषदर्शी नहीं अपितु गुणदृष्टा बनो। .दुनिया पैसेवालों से नहीं वरन् गुणवालों से प्यार करती है! लोगों के दिल में स्थान प्राप्त करना बड़ी अहमियतभरी बात है! जिस दोष या गुण को हम सम्मानित करेंगे वह दोष या . गुण हमारे भीतर में फैलने लगेगा। गुणों से प्रेम करोगे तो भीतर गुणों का खजाना भरेगा। व प्रवचन : ५३ ॥ परम कृपानिधि, महान् श्रुतधर, आचार्य श्री हरिभद्रसूरीश्वरजी, स्वरचित 'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ में सर्वप्रथम गृहस्थ जीवन का सामान्य धर्म बता रहे हैं। आठवाँ सामान्य धर्म है प्रधानसाधुपरिग्रहः । श्रेष्ठ सज्जन पुरुषों का स्वीकार करना। गृहस्थ दिन-रात अपने घर में तो बैठा नहीं रहता। कभी वह किसी के घर जाता है, कभी कोई उसके घर आता है। कभी कोई ऐसी विशेष बात बनती है तो किसी की राय लेता है....किसी के पास सुख-दुःख की बात करता है। आपकी पसंदगी क्या है? : दुनिया यह देखती है, सज्जन पुरूष यह देखते हैं कि आप किसके घर आते-जाते हो। किसके पास आपका बैठना-उठना है और किसके साथ आप घूमते-फिरते हो। आपके व्यक्तित्व का नाप इससे निकालती है दुनिया । यदि आप किसी शराबी के साथ ज्यादा बातें करते रहते हो, उनके घर जा-जाकर For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy