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प्रवचन- ५२
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ने इस लड़के पर ज्यादा विश्वास कर लिया। क्योंकि यह पढ़ा लिखा था, बोलने में मीठा था और कार्यदक्ष था। धीरे धीरे सेठ ने उस पर संपूर्ण विश्वास कर लिया। अपने गुप्त व्यापार की 'डायरी' भी उसको बता दी। कभी कभी वे अपनी तिजोरी की चाबी भी उसको सौंपने लगे ।
इस लड़के की बुद्धि बिगड़ी। उसने सेठ का 'ब्लेकमेलिंग' करने का सोचा । गुप्त व्यापार की डायरी लेकर वह अपने गाँव पहुँच गया। सेठ ने बंबई में उसको खोजा, परन्तु राजस्थान से समाचार मिल गया कि वह मिस्टर अपने गाँव में पहुच गये हैं । सेठ बेचारे बड़े घबराये हुए उसके गाँव पहुँचे। जिस मित्र के द्वारा इसको नौकरी में रखा था, उस मित्र को मिले और सारी बात बतायी। उस मित्र के प्रयत्न से वह डायरी वापस मिल गई और सेठ निश्चिंत होकर वापस बंबई लौटे।
जिसके पास रहना है, जिससे रुपये कमाने हैं, जिसके सहारे जीवन जीना है, उस आश्रयभूत व्यक्ति के साथ कभी भी धोखाबाजी नहीं करनी चाहिए । विश्वासघात नहीं करना चाहिए । आश्रय को तोड़नेवाला वास्तव में अपना ही अहित करता है। अपने पैरों पर ही कुल्हाड़ी मारता है। ऐसे व्यक्ति गृहस्थ जीवन में सफलता नहीं पा सकते। ऐसे व्यक्ति विशिष्ट धर्मपुरुषार्थ भी नहीं कर सकते। ऐसे लोग, स्व-पर का अहित करते हैं और दुःखी बनते हैं।
अपने योग्य आश्रय को पाना और उस आश्रय के प्रति अपने कर्तव्यों को निभाना, यह गृहस्थ जीवन का महत्त्वपूर्ण कर्तव्य है । इस कर्तव्य का समुचित पालन हो तो आश्रय देनेवाले निश्चिंतता से आश्रय दे सकेंगे और निराश्रितों को आश्रय मिलते रहेंगे।
आश्रय देनेवाले का विश्वासघात मत करो :
आज तो ज्यादातर लोगों ने आश्रय पाने की योग्यता खो दी है ! आश्रय की ही जड़ काटने का काम बढ़ गया है। विश्वासघात का पाप व्यापक बन गया है। इसलिए आज आश्रय देने में समर्थ लोग भी किसी को आश्रय देना पसन्द ही नहीं करते हैं।
अच्छा व्यक्ति समझकर, चार-पाँच महीने के लिऐ मकान दिया रहने को, बस, हो गया काम पूरा ! मकान खाली करने का नाम नहीं! मकानमालिक से लड़ने को तैयार!
अच्छा व्यक्ति समझकर दस-बीस हजार रुपये दिये एक साल के लिए ।
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