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प्रवचन-५१ मा. वैसे घर में या वैसे मोहल्ले में रहना चाहिए, जहाँ कि बार-बार
किसी भी तरह के उपद्रव, हुल्लड़ या झगड़े नहीं होते हों! • जब भी उपद्रव हो तब धर्म-अर्थ और काम - इन पुरुषार्थों
की क्षति न हो वैसे स्थान पर चले जाना चाहिए। . निर्भयता, निश्चितता और सरलता से धर्म-आराधना करने
के लिए शहर छोड़कर गाँवों में जाकर रहना पसंद करो! • केवल पैसे की धुन तमाम बुराइयों की जड़ है। उसकी कभी
बड़ी भारी कीमत चुकानी पड़ती है। • सम्यकदर्शन की प्राप्ति के लिए सामान्य धर्म का पालन
अनिवार्य है। आचार्य भगवंतों पर जिनशासन की जिम्मेदारी होती है। उन्हें जो भी उचित लगे वे कर सकते हैं। आचार्य का स्थान परम श्रद्धेय है।
र प्रवचन : ५१
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परम कृपानिधि, महान् श्रुतधर, पूजनीय आचार्य श्री हरिभद्रसूरीश्वरजी, स्वरचित 'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ में, गृहस्थधर्म का प्रतिपादन करते हुए छठ्ठा धर्म बताते हैं : उपद्रववाले स्थान का त्याग करना।
चाहे पुरुषार्थ धर्म का हो या अर्थ-काम का हो, उपद्रवरहित स्थान में ही सफलता प्राप्त कर सकता है। इसलिए सुज्ञ पुरुष को वैसे राज्य में, वैसे शहर या गाँव में रहना चाहिए जहाँ विशेष उपद्रव नहीं होते हैं। उपद्रव के प्रकार :
उपद्रव अनेक प्रकार के होते हैं। स्वराज्य की ओर से और पर राज्य की ओर से उपद्रव हो सकते हैं। वर्तमान काल में छोटे-बड़े राज्य और राजा नहीं रहे हैं, भारत एक सार्वभौम सत्ता बन गया है। इसलिए, प्राचीन काल में जिस प्रकार एक राजा दूसरे राज्य पर बात-बात में आक्रमण करता था, उस प्रकार वर्तमान काल में नहीं हो सकता है। समग्र भारत पर एक केन्द्रीय सरकार, वह भी राजा नहीं, प्रजा के प्रतिनिधियों की बनी हुई सरकार शासन कर रही है। विश्व के भिन्न भिन्न राष्ट्रों के बीच कुछ वैसे समझौते हुए हैं कि बात-बात में
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