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प्रवचन-६८
२१८ बन जायेगा | बुरे काम और अच्छे काम का खयाल प्रारंभ से ही दे देना चाहिए। पूरा खयाल रखने पर भी कभी गलती हो जाय तो उसको बचा लेना चाहिए | ___ अनर्थों से बचानेवाली होती है परलोक दृष्टि! हर कार्य में परलोक का विचार होना चाहिए । 'मैं ऐसा काम करता हूँ तो इसका फल परलोक में क्या मिलेगा?' हर प्रवृत्ति का पारलौकिक फल होता है, इसका ज्ञान होना चाहिए। हिंसा का फल और अहिंसा का फल, सत्य का फल, असत्य का फल, चोरी का फल और अचौर्य का फल, दुराचार का फल और सदाचार का फल, परिग्रह का फल और अपरिग्रह का फल। ___ यह ज्ञान होगा तो ही आप आश्रितों को बचा सकेंगे अनर्थों से |
सभा में से : परलोक की बात तो कोई सुनता ही नहीं है!
महाराजश्री : चूंकि परलोक की बात आपने पहले से नहीं सुनायी होगी! बच्चों को शैशवकाल से यदि बात सुनाते रहे होंगे तो आज भी वे सुनते! हाँ, बुद्धिमान् व्यक्ति परलोक के विषय में प्रश्न कर सकता है। आपको तर्कयुक्त प्रत्युत्तर देकर उसके मन का समाधान करना होगा। यदि समाधान करने की आपकी क्षमता न हो तो ज्ञानी पुरुषों के संपर्क में उनको ले जायँ । ज्ञानी गुरुजनों के संपर्क में परिवार को रखने से बहुत लाभ होता है।
पहले आप यह सोचें कि आपके आश्रितों को अनर्थों से बचाने की आपकी जागृति है क्या? आपकी दृष्टि है क्या? यदि आपकी जागृति होगी, दृष्टि होगी, तो काम कुछ तो बनेगा ही। आप आश्रितों की उपेक्षा मत करो। 'उनको जो करना हो सो करें, मुझे कुछ नहीं करना है....भुगतने दो अपने कुकर्मों के फल....।' ऐसा मत सोचो। जब सवाल इज्जत का हो तब क्या करना? : __ सभा में से : जब कुकर्मों की हद आ जाती है, इज्जत को बट्टा लगता है, बड़ा आर्थिक नुकसान करते हैं....तब सहा नहीं जाता।।
महाराजश्री : ऐसी अपरिहार्य स्थिति में क्या करना चाहिए, इस बात का मार्गदर्शन स्वयं ग्रन्थकार आचार्यदेव देते हैं :
___ 'गये ज्ञानस्वगौरवरक्षा।' यदि आश्रित लोग लोकविरुद्ध अनाचारादि सेवन करनेवाले बन जायँ, कुत्सित कार्य करने लगें तो आपको अपने ज्ञान व स्वमान की रक्षा करनी
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