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प्रवचन-६८
२१४ स्कूल-कॉलेज में पढ़नेवाले लड़के और लड़कियाँ तर्क-कुतर्क भी करेंगे। आप गुस्सा मत करना । उनका तिरस्कार मत करना । अन्यथा वे धर्मक्रिया के प्रति अनादरवाले बन जायेंगे | यदि आप नहीं समझा सकें तो जो ज्ञानीपुरूष समझा सकते हों, उनके पास भेजें, उनके पास जाने की प्रेरणा दें।
बुद्धिमान स्त्री-पुरुष को बौद्धिक संतोष देना आवश्यक होता है। कोई भी धर्मकार्य 'क्यों और कैसे?' समझकर किया जायेगा तो ही आनन्द मिलेगा। जिस कार्य में मनुष्य को आनन्द मिलता है वह कार्य फिर छूटता नहीं है। ___ परिवार के लोगों को - आश्रितों को धार्मिक एवं व्यावहारिक कार्यों में जोड़ने के लिए आपको, उन लोगों की अभिरुचि जाननी होगी और कार्यदक्षता देखनी होगी। उनमें कार्य करने का उत्साह जाग्रत करना होगा। उत्साह कैसे जाग्रत किया जाय, वह कला है न आप लोगों के पास? आक्रोश करने से अथवा गालियाँ बोलने से उत्साह नहीं जगता है, यह बात आप लोग मानते हो न? आश्रितों की आवश्यकताएँ भी सोचें : __सभा में से : जब लड़के-लड़कियाँ कोई भी काम करना नहीं चाहते....सिर्फ खाना-पीना, घूमना-फिरना और सोना....तब गुस्सा आ ही जाता है। वे कोई धर्मक्रिया करना नहीं चाहते, वे कोई व्यावहारिक काम भी करना नहीं चाहते....|
महाराजश्री : ऐसे आश्रितों की उपेक्षा करो। आक्रोश मत करो। कुछ कालक्षेप करो। समय को गुजरने दो। धैर्य धारण करो । जीवों की कर्मपरवशता का विचार करो। दूसरों के सामने आश्रितों की निंदा मत करो। 'जब समय आयेगा तब सुधरेगा', ऐसा विचार करो। बार-बार ऐसे आश्रितों को प्रेरणा भी मत करो। साथ-साथ, उनको सन्मार्ग पर लाने के उपाय भी सोचते रहो। कभी ऐसा भी होता है कि आश्रितों की आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होने से वे विपरीत आचरण करते हैं। इसलिए ग्रन्थकार ने कहा है :
'तत्प्रयोजनेषु बद्धलक्षता।' ० माता को क्या चाहिए? ० पिता को क्या चाहिए? ० पत्नी को क्या चाहिए? ० संतानों को क्या चाहिए? ० नौकरों को क्या चाहिए?
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