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प्रवचन-६८
२०८ • परिवार के लोगों को जरूरी भोजन, जरुरी कपड़े और रहने
की सुविधा... ये प्राथमिक जरूरतें पूरी करनी चाहिए। तुम्हारे पास पैसा हो तो - मित्र गरीब हो, बहन निःसंतान . या विधवा हो, वृद्ध ज्ञानीजन हो, कोई सज्जन पुरुष गरीब हो, तो उनकी जिम्मेदारी भी उठानी चाहिए। इन सबका पालन-पोषण करने की क्षमता न हो तो, माता-पिता, पत्नी और छोटे बच्चों का पालन-पोषण तो करना ही चाहिए किसी भी हालात में! परिवार की सेवा क्या यह समाजसेवा नहीं है? परिवार क्या समाज या देश से अलग है? अपने परिवार की उपेक्षा करके लोग समाजसेवा करने के लिए क्यों लार टपकाते हुए दौड़ रहे हैं? वहाँ मान-सम्मान और चंद्रक मिलते हैं! घर में तो यह सब मिलने से रहा!
आश्रितों की उपेक्षा मत करो....उनके संस्कार-सदाचार के लिए पूरी सतर्कता बरतो!
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प्रवचन : ६८
परम कृपानिधि, महान् श्रुतधर, आचार्यश्री हरिभद्रसूरिजी, स्वरचित 'धर्मबिंदु' ग्रन्थ में गृहस्थ जीवन के सामान्य धर्मों का प्रतिपादन करते हुए अट्ठारहवाँ सामान्य धर्म 'आश्रितों का पालन' बता रहे हैं।
जिनके पालन-पोषण की जिम्मेदारी हो उनका पालन-पोषण करना ही चाहिए | माता-पिता का, आश्रित स्नेही-स्वजनों का एवं सेवकजनों का पालनपोषण करना ही चाहिए | यदि इन सभी का पालन-पोषण करने की शक्ति न हो तो भी माता-पिता, सुशीला नारी और अशक्त संतानों का पालन-पोषण करना ही चाहिए। यदि रोटी, कपड़ा और मकान न मिले तो? : __ हर मनुष्य के जीवन में 'जिम्मेदारी' एक महत्त्व की बात होती है। दूसरों के प्रति अपनी जिम्मेदारी को निभानेवाला मनुष्य गृहस्थ जीवन को शोभायमान करता है और अपने सामान्य धर्मों का पालन करने का श्रेय प्राप्त करता है। सर्वप्रथम अपने परिवार के प्रति जो कर्तव्य होते हैं, उन कर्तव्यों का पालन
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