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प्रवचन- ५०
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८. इस भव में यदि तपश्चर्या का मद किया तो आनेवाले जन्म में लाख उपाय करने पर भी तपश्चर्या नहीं कर पाओगे ।
इस प्रकार दूसरी भी बातों में समझ लेना । इस भव में जिस बात का मद करोगे, दूसरे भवों में वह बात या तो मिलेगी नहीं, अथवा मिलेगी तो हीन कक्षा की मिलेगी।
मदोन्मत्त मनुष्य, धर्म-अर्थ और कामपुरूषार्थ का संतुलन नहीं निभा सकता है। वैसे इन्द्रियविजय को भी प्राप्त नहीं कर सकता है। इसलिए, काम-क्रोधलोभ-मद-मान और हर्ष - इन छह आन्तरिक शत्रुओं पर, अपनी-अपनी भूमिका के अनुसार विजय प्राप्त करना चाहिए और इन्द्रियविजेता बनना चाहिए । अब एक आन्तरिक शत्रु-'हर्ष' की पहचान कराना बाकी है, कल हर्ष - शत्रु की पहचान करेंगे और इन्द्रियविजय के विषय में कुछ चिन्तन करेंगे।
आज बस, इतना ही ।
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