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प्रवचन-६३
१६१ रुद्रसोमा ने ज्यों ही सामायिक व्रत पूर्ण किया, आर्यरक्षित ने प्रश्न किया।
सभा में से : रुद्रसोमा ने आशीर्वाद नहीं दिये, इससे आर्यरक्षित को उसके प्रति गुस्सा नहीं हुआ क्या?
महाराजश्री : माँ के प्रति क्रोध करने की विकृति उस परिवार में थी ही नहीं। माँ के प्रति किस बात का गुस्सा? सुशील-गुणवती माँ के प्रति गुस्सा करनेवाला लड़का कभी भी, किसी भी क्षेत्र में विकास नहीं कर सकता है। विकास तो नहीं, विनाश अवश्य होता है। आजकल तो आप लोगों के परिवारों में बात-बात में लड़के-लड़कियाँ माता-पिता पर गुस्सा करने लगे हैं न? मातापिता भी संतानों के प्रति बात-बात में गुस्सा करने लगे हैं। आप लोगों का पारिवारिक जीवन सुधरेगा क्या? आप सुधारना चाहते हो क्या? माँ की इच्छा पूरी करने को आर्यरक्षित तैयार :
आर्यरक्षित ने प्रश्न किया माँ से : 'माँ, क्या तुझे प्रसन्नता नहीं हुई मेरे शास्त्राध्ययन से?' माँ की आँखों में अपनी आँखें जोड़कर अति विह्वल चित्त से उसने पूछा | रुद्रसोमा ने भी एक क्षण बेटे की आँखों में देखा....और बोली : 'वत्स, मुझे....ऐसे शास्त्राध्ययन से कैसे संतोष हो? अर्थोपार्जन की दृष्टि से किया हुआ अध्ययन सद्गति नहीं देता है, दुर्गति देता है....।
'बेटा, तू मुझे प्यारा है, बहुत दिनों के बाद तू आया, तेरा मुँह देखकर मुझे बड़ा आनन्द हुआ है, परन्तु जिन शास्त्रों को पढ़कर आया है, उन शास्त्रों से तेरा आत्महित नहीं होनेवाला है। तू राजसभा में महापंडित बनकर बैठेगा, अनेक दूसरे पंडितों को वाद-विवाद में पराजित करेगा.... परन्तु तेरे आन्तरिक शत्रुओं को तू पराजित नहीं कर सकेगा । आन्तरिक शत्रु - काम, क्रोध, लोभ, मद, मान और हर्ष-इनको पराजित किये बिना सद्गति होगी कैसे? मैं चाहती हूँ कि मेरी संतान सद्गति प्राप्त करे। ऐसा अध्ययन करे कि जिस अध्ययन से उसकी आत्मा निर्मल बने, कर्मों के बंधन तोड़नेवाली बने!'
आर्यरक्षित माँ की शक्कर से भी ज्यादा मधुर वाणी सुनता रहा....उसने माँ के दोनों हाथ पकड़ लिए और कहा : 'मेरी माँ, तू मुझे कह दे कि मुझे अब कौन-से शास्त्रों का अध्ययन करना चाहिए कि जिससे तुझे संतोष हो जाय । तू मुझे अविलम्ब आज्ञा कर.... मुझे दूसरा कोई काम नहीं करना है। मेरी तो एक ही तमन्ना है.... मेरी माँ को संतोष प्रदान करना।'
कौन बोलता है ये बातें? एक महान् विद्वान! यही हमारी पवित्र संस्कृति
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