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प्रवचन-६१
१३७ जनसमूह गुणप्राप्ति के प्रति उदासीन बनेगा। गुणसमृद्धि के प्रति आज कैसी घोर उदासीनता फैली हुई है समाज में? सर्वत्र धनसमृद्धि का ही तीव्र आकर्षण दिखाई देता है। दोषक्षय का विचार भी कौन करता है? लोकसम्पर्क में गुणदोष का विचार ही नहीं होता है। ___ जीवन में यदि सुख-शान्ति पाना है तो गुणसमृद्ध बनने का संकल्प कर लो। दोषमुक्त होने का दृढ़ निश्चय कर लो। दूसरा कोई मार्ग नहीं है सुखशान्ति पाने का | भौतिक वैभव से जो सुख मिलता है वह वास्तविक सुख नहीं है। मनुष्य के पास कितना भी वैभव हों, परन्तु वह दोष व दुर्गुणों से भरा हुआ होगा तो शान्ति प्राप्त नहीं कर सकेगा, चित्तप्रसन्नता प्राप्त नहीं कर सकेगा। वह दुःख और त्रास ही पाएगा। एक प्राचीन कथा : __ प्राचीनकाल की एक घटना है। एक राज्यमंत्री था। मंत्री बुद्धिमान तो था ही, गुणवान भी था । दीर्घदर्शी था और प्रशान्तात्मा था। उसकी पत्नी रूपवती थी, परन्तु अत्यन्त क्रोधी थी। अपने पति का भी अनादर करती थी। जिद्दी भी ऐसी थी कि पकड़ी हुई बात को छोड़ती ही नहीं! महामंत्री पत्नी की सारी हरकतें शान्ति से सहन करता था। प्रारंभ में पत्नी को समझाने का प्रयत्न किया, परन्तु जब निष्फलता मिली तब समझाने का प्रयत्न भी छोड़ दिया। __ सभी लोग समझाने से नहीं समझते । बहुत थोड़े लोग ऐसे होते हैं कि जो समझाने से समझते हैं और सन्मार्ग पर आ जाते हैं जबकि कुछ लोग तो ठोकर खाने के बाद भी नहीं सुधरते! उपदेश सुनते हो पर मनन-आचरण करते हो? :
आप लोगों ने कितने धार्मिक प्रवचन सुने हैं? दोषों से मुक्त होने के कितने उपदेश सुने हैं? कितना सुधार हुआ जीवन में? जीवन में ठोकरें भी क्या कम खायी हैं? फिर भी बोधपाठ लिया? उपदेश सुनते हैं परन्तु उस पर चिन्तनमनन नहीं करते। ठोकरें खाते हैं परन्तु आत्मनिरीक्षण नहीं करते! अपनी भूल नहीं देखते। फिर सुधार कैसे हो सकता है?
उस महामंत्री ने पत्नी को समझाने का प्रयत्न छोड़ दिया। पत्नी के रोषरीस वगैरह दोष बढ़ते गये। एक दिन, रात्रि के समय पति के साथ झगड़ा कर दिया और घर छोड़कर अपने मायके जाने के लिए निकल पड़ी। रास्ते
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