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प्रवचन-५९
११४ मानसिक तनाव से छुटकारा पाने के लिए सत्पुरुषों का समागम, धर्मग्रन्थों का पठन-पाठन, योगाभ्यास और प्रकृति के सांनिध्य में रहना - ये उपाय हैं। अपने दिल-दिमाग पर बुरे निमित्तों का असर न हो. वैसी मानसिक स्थिति का निर्माण करना है... मन को इतना Evilproof बना देना है। मनुष्य एक तरफ अति निंदनीय पापों का आचरण करता रहे और दूसरी तरफ विशिष्ट धर्मक्रियाएँ भी करता रहे, तो क्या संसार से उसकी मुक्ति हो सकती है क्या? नहीं न? तो, जिन्हें भी सुख-शांतिमय जीवन जीना हो उन्हें इन निंदनीय पापों का त्याग करना ही होगा। कम से कम इतना तो दिल में कसकना ही चाहिए कि 'मैं जो निंदनीय काम करता हूँ, वह मुझे नहीं करना चाहिए। यह करके मैं पापकर्म बाँध रहा हूँ....मेरी आत्मा मलिन होती है, मेरा मन कमजोर होता है।' सामान्य धर्म के पालन के लिए मन को तैयार करना होगा। बंधी-बंधायी जीवन-पद्धति में कुछ परिवर्तन करना होगा।
COS-45
र प्रवचन : ५९
र
परम कृपानिधि, महान् श्रुतधर, आचार्य श्री हरिभद्रसूरीश्वरजी स्वरचित 'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ में गृहस्थजीवन का सामान्य धर्म बता रहे हैं। तेरहवाँ सामान्य धर्म है निन्दित कार्यों में तनिक भी प्रवृत्ति नहीं करना । इस वर्तमान जीवन में और पारलौकिक जीवन के लिए जो कार्य अहितकारी होते हैं, वे कार्य नहीं करने चाहिए | मन-वचन और काया से नहीं करने चाहिए |
टीकाकार आचार्यदेव ने लिखा है कि 'निन्दनीय कार्यों में मन को भी नहीं जोड़ना चाहिए।' इसका तात्पर्य यह है कि पाप-कार्यों से मनुष्य को सर्वथा अलिप्त रहना चाहिए। आपके मन में प्रश्न पैदा होगा ही कि 'जब सर्वत्र मांसाहार, शराब, जुआ और परदारागमन जैसे पाप फैल गये हैं....वातावरण ही दूषित बन गया है, तो हम कैसे इन पापों से बच सकते हैं? ये पाप तो वायुमंडल में व्याप्त हो गये हैं....।'
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