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प्रवचन-५८
१०५ अंग्रेजों की गुलामी से देश स्वतंत्र होने के बाद तो कुछ बची हुई अच्छी आचार-परंपराएँ भी टूटती चली हैं। अनाचारों की परंपराएं काफी चल पड़ी हैं। कोई व्यापक देशाचार रहा ही नहीं है। नैतिकता की सारी बातें भूगर्भ में चली गई हैं। देश में व्यापक अनाचार और भ्रष्टाचार पनप रहा है। अच्छे देशाचार ही नहीं रहे तो उनका पालन करने की बात ही कहाँ रही? आज तो, देश में व्यापक बने हुए अनाचार और भ्रष्टाचार का पालन नहीं करने का उपदेश देना पड़ता है। सदाचार की 'ट्रि-पोय' :
सदाचारों में तीन बातें प्रमुख होती हैं : १. अच्छा खाना-पीना, २. मर्यादाशील वस्त्रभूषा, ३. परस्पर के पवित्र संबंध ।
इन बातों के प्रति 'धर्मबिन्दु' के टीकाकार आचार्यश्री ने भी निर्देश किया है। अब, आप ही बताइए, इन तीन सदाचारों में से एक भी सदाचार देशव्यापी रहा है? देशव्यापी प्रचार तो मांसाहार का हो रहा है। देशव्यापी प्रसार शराब का हो रहा है। देश के वर्तमान शासकों को प्रजा से, प्रजा के आत्महित से कहाँ संबंध है? शासकों को चाहिए रुपये, चाहिए वैभव, चाहिए भौतिक विकास....!!! ___ मांसाहार को अच्छा खाना बताया जा रहा है इस देश में! आश्चर्य है न? अहिंसा जिस देश की संस्कृति है, दया और करुणा जिस देश के प्राण हैं....इस देश के विद्यालयों में पढ़ाया जाता है कि 'अंडे-मछली का भोजन श्रेष्ठ भोजन है! मांसाहार करना ही चाहिए!' विद्यालयों में बच्चों को यह पढ़ाया जाता है। __ मांस का विदेशों में निर्यात होता है भारत से। चूँकि देश के शासकों को इससे ढेर सारे रुपये मिलते हैं। आज तो भ्रष्टाचार जैसे कि देशाचार :
सभा में से : उन रुपयों से देश में अच्छी योजनाएँ कार्यान्वित होती हैं न? महाराजश्री : योजनाओं को माध्यम से नेता लोग अपने घर की, अपने सगे-संबंधियों की योजनाएँ पहले पूर्ण कर लेते हैं, यह बात आप नहीं जानते?
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