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प्रवचन-५७
___ ९९ और पिताजी के पास पहुँचे । बंबई जाकर देखा तो पिता का स्वास्थ्य बहुत बिगड़ गया था। दोनों ने आकर पिताजी के चरणों में प्रणाम किया और कहा : 'पिताजी, ऐसा स्वास्थ्य कैसे हो गया?' पुत्रवधू तो अपनी सास और ननद के पास पहुंच गई थी। दोनों के साथ बातें करती थी परन्तु उसके कान तो पितापुत्र की बातों पर लगे थे। पिता पुत्र से कह रहे थे : 'बेटा, तेरी बहन की शादी करनी है। दो महीने के बाद मुहूर्त आता है। परन्तु शादी कैसे करूँगा? मेरे पास सौ रुपये की भी बचत नहीं है। इस चिन्ता से ही मेरा स्वास्थ्य बिगड़ा है। खाना भी अच्छा नहीं लगता है। बेटा, तू भी क्या कर सकता है? तुझे वहाँ नया-नया घर बसाना अनिवार्य है....तू भी रुपये नहीं बचा सकता, यह मैं समझता हूँ।' लड़का बैठा रहा। उसके पास इस समस्या का हल नहीं था। परन्तु उसकी पत्नी कमरे में आयी, उसके पीछे-पीछे उसकी सास और ननद भी आयीं।
पुत्रवधू ने ससुर के चरणों में प्रणाम कर, अपनी पर्स में से नोटों का एक बंडल निकाल कर ससुरजी को कहा : 'लीजिए ये दस हजार रुपये हैं, बहन की शादी में काम आयेंगे।' ___ उसका पति तो देखता ही रह गया । वह कभी नोटों के बंडल को देखता है, तो कभी पत्नी को देखता है। उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा है। 'तू ये रुपये कहाँ से लायी?' 'मैं और कहाँ से लाती? आप मुझे प्रति माह दो हजार रुपये देते थे, उसमें से मैं एक हजार रुपये बचा लेती थी। दस महीने के दस हजार बचा लिये।' बचत ने इज्जत बचा ली : __ 'सुनिये पिताजी, शादी करके मैं आपके घर में आयी, आपने मुझे कितनी सुख-सुविधा दी! आपकी उदारता मैंने अद्भुत पायी, परन्तु मैंने देखा कि अपने घर में बचत कुछ भी नहीं होती है। मुझे मालूम था कि मेरी ननद के हाथ पीले करने के दिन नजदीक हैं! रुपयों के बिना शादी कैसे होगी? आपको और आपके सुपुत्र को मैं कैसे उपदेश दूँ? मैंने दूसरा ही रास्ता लिया! इनकी सर्विस ट्रान्सफर करवा ली और वहाँ जाकर दस हजार रुपये बचा लिये!'
सास तो पुत्रवधू को अपने उत्संग में लेकर आँसू बहाने लगी। ससुर की आँखों में से भी आँसू टपकने लगे। उन्होंने कहा : 'बेटी, तुझे समझने में हमने
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