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अर्थ : हे, प्रभु ! ऊपर के भक्तिराग से इन्द्रादि देव प्रभुजी की फल पूजा करने के लिए अनेक प्रकार के उत्तम फलों से पूजा कर मोक्ष की प्राप्तिरूप फल को पाने में सहायभूत ऐसे त्यागधर्म अर्थात् चारित्रधर्म की याचना
करते हैं । अर्थात् मोक्षफल उत्तम फलों से फल-पूजा। का दान मांगते हैं।
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