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से प्रतिष्ठित किया गया हो तो उनकी अंगलुंछना करते समय प्रभुजी में प्रयुक्त अंगलुंछना का प्रयोग नहीं करना चाहिए। अंगलुंछना का उपयोग करने से पहले उसे रखने के लिए उपयोगी एक थाल साथ में रखना चाहिए और उसी में उसे रखना चाहिए। पबासन, दरवाजा, पाईप आदि में अंगलुंछना को करने के बाद या पहले नहीं रखना चाहिए। अंगलुंछना करते समय एक हाथ को प्रभुजी से, दीवाल से, परिकरसे या अन्य किसी वस्तु से नहीं टिकाना चाहिए। पाटलुंछणा करने वाले को अंगलुंछना का स्पर्श नहीं करना चाहिए । प्रभुजी के पीछे का हिस्सा अथवा पबासन साफ करते समय प्रभुजी के किसी भी अंग से पाटलुंछना का स्पर्श हो जाए तो महान आशातना का पाप लगता है। प्रक्षाल करने के बाद अंगलुंछना करने से पहले पंचधातु के प्रभुजी अथवा सिद्धचक्रजी आदि यन्त्रों में से पानी निचोड़ने के लिए उसे आड़ा-टेढ़ा, ऊँचा-नीचा अथवा एक दूसरे के ऊपर नहीं रखना चाहिए । ऐसा करने से घोर आशातना का पाप लगता है। अंगलुंछना करते समय स्तुति-स्तोत्रपाठ करने से अथवा एक दूसरेको इशारेआदि करने से आशातना लगती है। अंगलुंछना का कार्य पूर्ण होने के साथ ही सम्पूर्ण स्वच्छ तथा अंगलुंछना सुखाने के लिए टॅगी हुई रस्सी पर इस प्रकार
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