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सम्पन्न हो गये हो अथवा केशरपूजा आदि भी चल रही हो अथवा स्वयं चैत्यवन्दन आदि भावपूजा कर रहे हों, उस समय भगवान के अंगूठे पर भी प्रक्षाल नहीं किया जा सकता। वृषभाकार कलश से प्रभुजी का प्रक्षाल किया जा सकता है। प्रक्षाल करते समय पबासन में एकत्रित 'नमण'को स्पर्श भी
नहीं करना चाहिए। • प्रक्षाल अथवा पूजा करते समय मुखकोश, वस्त्र व शरीरका
कोई भी भाग प्रभुजी को स्पर्श नही करना चाहिए। कलश नीचे नही गिरना चाहिए । गिर जाए तो उपयोग नही करना चाहिए। न्हवण जल पर किसी का भी पैर न लगे, वैसी व्यवस्था करनी चाहिए। न्हवण जल का विसर्जन प्रभुजी की भक्ति मे उपयोगी बागबगीचे मे नहीं करना चाहिए । शायद वही पर करना जरुरी हो, तो उसमे से उत्पन्न हुए फूल आदि निर्माल्य देव-द्रव्य' होने से यथोचित द्रव्य देवद्रव्य में भरकर ही प्रभु-भक्ति में लेना चाहिए। न्हवण जल का विसर्जन हेतु ८ फुट गहरी व ३-४ फुट लंब
चोरस कुंडी ढक्कन के साथ बनानी चाहिए। • पंचामृत व दुध से प्रक्षाल करते समय गर्भगृह से बहार योग्य
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