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प्रदक्षिणा देने की विधि
मूलनायक प्रभुजी की दाहिनी ओर से (प्रदक्षिणा देनेवाले की बांई ओर से) इया समिति के पालन पूर्वक तीन
प्रदक्षिणा करनी जयणा पूर्वक
चाहिए। प्रदक्षिणा त्रिक
हो सके तो मंदिर के
पूरे परिसर की अथवा मूलनायक प्रभुजीकी अथवा त्रिगड़े में बिराजमान प्रभुजी की प्रदक्षिणा करनी चाहिए। शत्रुजयतीर्थ का दोहा बोलने के बदले 'काल अनादि अनंतथी...'दोहे तीन प्रदक्षिणा में बोलने चाहिए। दोहा मन्दस्वरमें, गम्भीर आवाज में तथा एक लय में सम्यग् दर्शन-ज्ञान-चारित्र'की प्राप्ति के लिए बोलना चाहिए। प्रदक्षिणा देते समय कपड़े व्यवस्थित करना व इधर-उधर देखना, वह दोष कहलाता है।
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