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पबासन के सिवाय गर्भगृह के फर्श को जमीन-पौंछने से साफ करना चाहिए। अंग-पौंछना, पाट-पौंछना तथा जमीन-पौंछना का परस्पर स्पर्श कभी नहीं करना चाहिए। तीन बार अंग-लुंछना करने के बाद दशांगधूप के द्वारा भगवान को सुवासित करना चाहिए। कपूर-चन्दन मिश्रित कटोरी में से पाँचों ऊँगलियों से प्रभुजी के अंगों में मौन का पालन करते हुए चन्दन पूजा करनी चाहिए। सुयोग्य तथा स्वच्छ वस्त्र से भगवान के सर्वांग को कोमलता पूर्वक विलेपन पूजा के बाद पौंछना चाहिए। मौनपूर्वक मन ही मन दोहा बोलते हुए केशर-चन्दन-कस्तूरी मिश्रित चन्दन से प्रभुजी के नव अंगों में पूजा करनी चाहिए। शुद्ध, अखंडतथा सुगन्धित पुष्प व पुष्पमाल से मौनपूर्वक मन ही मन मन्त्रोच्चार करते हुए पुष्पपूजा करनी चाहिए। दशांग आदि उत्तम द्रव्यों के द्वारा गर्भगृह के बाहर बाँई ओर मन्त्रोच्चारपूर्वक धूपपूजा करनी चाहिए। शुद्ध घी तथा रूई की बाती से पुरुषों को प्रभु की दाहिनी ओर तथा स्त्रियों को बाँई ओर खड़े होकर मन्त्रोच्चार पूर्वक दीपपूजा करनी चाहिए। नृत्य के साथ चामर-पूजा तथा शुभ भाव से दर्पण पूजा करनी चाहिए। दर्पण में प्रभुजी के दर्शन होते ही पंखा धुमाना चाहिए। शुद्ध तथा अखंड अक्षत से अष्टमंगल/नंदावर्त/स्वस्तिक का
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