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भाव पूजा में प्रविष्ट होने के लिए तीसरी निसीहि बोलनी चाहिए। उसके बाद इरियावहियं करके चैत्यवंदन करना चाहिए । अन्त में यथाशक्ति पच्चखाण लेना चाहिए।
जिनमंदिर से उपाश्रय जाकर पूज्य गुरुभगवंतो को गुरुवंदन करके उनके पास भी पच्चक्खाण लेना चाहिए। पू. गुरुभगवंत को गोचरी-पानी के लिए विनंति करके अपनी पीठ न दिखे, वैसे उपाश्रय से निर्गमन करना चाहिए। (विशेष सूचना : राइअप्रतिक्रमण करने से पहले मंदिर नहीं जाना चाहिए।मंदिरजाने के बाद राइअप्रतिक्रमण नही करना चाहिए। प्रात: काल की पूजाकासमय अरुणोदय सेमध्याह्न के१२.००बजे तक।)
(२) मध्याह्नकाल की पूजा :- इस भव के पापों का नाश करती है। जिन पूजा-विधिमें इस पूजा का विस्तृत वर्णन किया गया है। यह अष्ट प्रकारी पूजा दोपहर के भोजन से पहले पुरिमड्ढ पच्चक्खाण के आस-पास करने का विधान है।
(३) सायंकाल की पूजा :-सात भव के पापो का नाश करती है।सूर्यास्त से पहले शाम का भोजन लेने के बाद व पानी पी लेने के बाद स्वच्छ सूती वस्त्र धारण करने चाहिए । स्वच्छ थाली मे धूपकाठी व धूपदानी और फानूस युक्त दीपक लेकर जिनमंदिर जाना चाहिए । परिसर मे प्रवेश करते ही 'पहली-निसीहि' बोलनी चाहिए । मुख दर्शन होते ही अर्ध-अवनत होकर 'नमो जिणाणं' बोलना चाहिए । सूर्यास्त के बाद जयणा पालन मुश्किल होने से प्रदक्षिणा नहीं देनी चाहिए । प्रभु के समक्ष खडे रहकर भाववाही स्तुतियाँ बोलनी चाहिए।