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काउसग्ग करते समय उच्चारण करते हुए, गुनगुनाते हुए अथवा संख्या आदि गिनने के लिए ऊँगलियों की गांठ को स्पर्श नहीं करना चाहिए। • श्री पार्श्वनाथ जिन स्तुति
(= थोय). शंखेश्वर पार्श्वजी पूजीए, नरभवनोल्हावो लीजीए। मन-वांछित पूरण सुरतरु, जय वामा सुत अलवेसरूं ॥१॥ (थोय में भी चैत्यवंदन के अनुसार उस-उस-प्रभुजी की थोय बोलनी चाहिए ।) फिर वापस एक खमासमण देना चाहिए। फिरखडे होकर योग मुद्रा में अपनी शक्ति अनुसार पच्चक्खाण लेना
चाहिए। इस तरह कायोत्सर्ग करें ।
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