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मुणिसुव्वयं नमिजिणंच।वंदामि रिटुनेमि, पासंतह वद्धमाणंच ॥ ४ ॥ एवं मए अभिथुआ, विहुयरयमला पहीणजरमरणा । चउवीसं पिजिणवरा, तित्थयरा मे पसीयंतु ॥५॥कित्तिय वंदिय महिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा।आरुग्ग बोहिलाभं,समाहि -वर मुत्तं किंतु ॥६॥ चंदेसु निम्मलयरा, आइच्चेसु अहियंपयासयरा ।सागर वर गंभीरा, सिद्धा सिद्धि मम दिसंतु॥७॥ (फिर वापस तीन बार खमासमण देने चाहिए।)
•खमासमण सूत्र. इच्छामि खमासमणो! ॥१॥वंदिउं जावणिज्जाए निसिहिआए ॥२॥ मत्थएण वंदामि ॥३॥
-: चैत्यवंदन के प्रारंभ मे बोलने योग्य स्तोत्र :सकल-कुशल-वल्ली, पुष्करावर्त- मेघो; दुरित-तिमिर-भानुः कल्पवृक्षोपमानः । भवजल-निधि-पोतः, सर्व संपत्ति हेतुः, स भवतु सततं वः; श्रेयसे शान्तिनाथः ॥ ('श्रेयसे पार्श्वनाथः आदि बोलना अनुचित है।)
सामान्य जिन चैत्यवंदन. तुज मुरतिने निरखवा, मुज नयणा तरसे; तुम गुणगणने बोलवा, रसना मुज हरखे ॥१॥ काया अति आनंद मुज, तुम युग पद फरसे; तो सेवक तर्या विना, कहो किम हवे सरसे ॥२॥
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