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त्रिमंत्र
है।' अरे, वे तो सिद्ध हो गये हैं। वे तो हाल में सिद्धक्षेत्र में हैं। आप सिद्ध को अरिहंत कहते हैं? ये लोग किसे अरिहंत कहते होंगे?
प्रश्नकर्ता: जो हाल में सिद्ध हैं उन्हें ।
दादाश्री : सिद्ध हैं न? आपको विश्वास है न? शत-प्रतिशत है न ? प्रश्नकर्ता: हाँ, शत-प्रतिशत ।
दादाश्री : इसलिए उन्हें सिद्धाणं में रखा है। सिद्धाणं में पहुँच गये हैं। उसके बाद अब अरिहंताणं में कौन हैं ? अरिहंताणं यानी प्रत्यक्ष, हाजिर होने चाहिए। लेकिन अभी मान्यता उलटी चल रही है। चौबीस तीर्थंकरों को अरिहंत कहा जाता है। पर यदि सोचें तो वे लोग तो सिद्ध हो गये हैं। इसलिए 'नमो सिद्धाणं' बोलने पर उसमें वे आ ही जाते हैं, तब अरिहंत का विभाग बाकी रहता है। इसलिए सारा नमस्कार मंत्र परिपूर्ण नहीं होता और अपूर्ण रहने से उसके फल की प्राप्ति नहीं होती है। इसलिए हाल में वर्तमान तीर्थंकर होने चाहिए। अर्थात् वर्तमान तीर्थंकर सीमंधर स्वामी को अरिहंत मानें, तभी नमस्कार मंत्र पूर्ण होगा। चौबीस तीर्थंकर तो सिद्ध हो गये, वे सभी 'नमो सिद्धाणं' में आ जाते हैं। जैसे कोई कलेक्टर हो और उनके गवर्नर होने के पश्चात् हम उन्हें कहें कि, 'अय, कलेक्टर यहाँ आइए।' तो कितना बुरा लगेगा, नहीं? प्रश्नकर्ता: बुरा लगेगा ही ।
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दादाश्री : उसी प्रकार सिद्ध को अरिहंत मानें तो बड़ा भारी नुकसान होता है। उनका नुकसान नहीं होता, क्योंकि वे तो वीतराग हैं, पर हमारा भारी नुकसान होता है, ज़बरदस्त नुकसान होता है। पहुँचे प्रत्यक्ष तीर्थंकरों को ही
महावीर भगवान आदि सारे तीर्थंकर मोक्ष में जाने हेतु काम नहीं आनेवाले, वे तो मोक्ष में जा चुके हैं और हम यह 'नमो अरिहंताणं' बोलते हैं वह उनके संबंध में नहीं है। उनका संबंध तो 'नमो सिद्धाणं'
त्रिमंत्र
से हैं। यह 'नमो अरिहंताणं' जो हम बोलते हैं वह किसे पहुँचता है? अन्य क्षेत्रों में जहाँ-जहाँ अरिहंत हैं उनको पहुँचता है। महावीर भगवान को नहीं पहुँचता । डाक तो हमेशा उसके पते पर ही पहुँचेगी। तब लोग क्या समझते हैं कि यह 'नमो अरिहंताणं' बोलकर हम महावीर भगवान को नमस्कार पहुँचाते हैं। वे चौबीस तीर्थंकर तो मोक्ष में जाकर बैठे हैं, वे तो ‘नमो सिद्धाणं' हुए। वे भूतकालिन तीर्थंकर कहलाते हैं। इसलिए आज सिद्ध भगवान कहलाते हैं और जो वर्तमान तीर्थंकर हैं, उन्हें अरिहंत कहा जाता हैं।
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बुद्धि से भी समझ में आयेगी यह बात
प्रश्नकर्ता: अरिहंताणं बोलते हैं मगर अरिहंत तो यह सीमंधर स्वामी ही है, यह बात आज समझ में आयी ।
दादाश्री : सारा का सारा कद्दु सब्ज़ी में गया ! लौकी की सब्ज़ी काटी और सारा कद्दू बिना कटे उसमें गया ! ऐसा चलता ही रहता है.... क्या करें फिर ?
आपको, एक वकील की हैसियत से कैसा लगा?
प्रश्नकर्ता: वह बात बैठ गई, दादाजी। वकील की हैसियत से तो ठीक है मगर मैं जैनधर्म का चुस्त अनुयायी होने के नाते मुझे बात समझ में आ गई। आपने जो बात बताई उस पर से यदि जैन हो और ठीक से समझता हो, तो उसकी समझ में यह आ जाये कि वर्तमान में जो विचरण करते हैं, वे ही तीर्थंकर कहलायें । इसीलिए तो अरिहंत को सिद्ध से आगे स्थान दिया है।
कहीं भी होने पर, वे प्रत्यक्ष ही
प्रश्नकर्ता: वे लोग सीमंधर स्वामी विदेश में हैं ऐसा मानते हैं न?
दादाश्री : हमें यह नहीं देखना है कि वर्तमान तीर्थंकर कहाँ हैं? वे चाहें विदेश में हों या कहीं भी हों।