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त्रिमंत्र
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प्रश्नकर्ता: पर तीनों मंत्र एक साथ बोलने का फ़ायदा क्या ?
दादाश्री : अड़चनें चली जाती हैं न! व्यवहार में अड़चनें आती हों तो कम हो जाती हैं। पुलिसवाले से साधारण पहचान होने पर छूट जाते हैं कि नहीं छूट जाते?
प्रश्नकर्ता: हाँ, छूट जाते हैं।
दादाश्री : इसलिए इस त्रिमंत्र में जैन, वासुदेव और शिव के तीनों मंत्रों का समन्वय किया है। यदि आप देवों का सहारा चाहते हैं तो तीनों मंत्र साथ में बोलिए। उनके शासनदेव होते हैं, जो आपको सहाय करेंगे। इसलिए इस त्रिमंत्र में जैन का मंत्र है, वह जैनों के शासनदेवों को खुश करने का साधन है। वैष्णव का मंत्र उनके शासनदेवों को खुश करने का साधन है और शिव का जो मंत्र है वह उनके शासनदेवों को खुश करने का साधन है। हमेशा प्रत्येक के पीछे शासन की रक्षा करनेवाले देव होते हैं। वे इन मंत्रों को बोलने पर खुश होते हैं। इसलिए हमारी अड़चनें दूर हो जाती हैं।
आपको संसार की अड़चनें होने पर इन तीनों मंत्रों को एक साथ बोलने पर अड़चनें हलकी हो जायेंगी। आपके बहुत सारे कर्मों का उदय हुआ हो न, उन उदयों को नरम करने का यह रस्ता है। अर्थात् आहिस्ता-आहिस्ता राह पर चढ़ने का रास्ता है। जिस कर्म का उदय सोलह आने है, वह चार आने हो जायेगा। इसलिए इन तीन मंत्रों को बोलने पर आनेवाली सारी अड़चनें हलकी हो जायेंगी। जिससे आपको शांति रहेगी।
बनायें निष्पक्ष त्रिमंत्र
परापूर्व से ये तीन मंत्र हैं ही, पर इन लोगों ने लड़ाई-झगड़े करके मंत्र भी बाँट लिए हैं कि, 'यह हमारा और यह तुम्हारा'। जैनों ने नवकार मंत्र अकेला ही रखा और बाकी दो निकाल दिए। वैष्णवों ने नवकार मंत्र निकाल दिया और अपना रखा। अर्थात् मंत्र सभी ने बाँट लिए ।
त्रिमंत्र
अरे, इन लोगों ने भेद करने में कुछ बाकी नहीं छोड़ा है, और इसलिए ही हिन्दुस्तान की यह दशा हुई, भेद करने की वजह से । देखिए, इस देश की स्थिति अस्त-व्यस्त हो गई है न? और ये भेद जो किये हैं,
वे अज्ञानियों ने अपना मत सही बताने के लिए किये हैं। जब ज्ञानी होते है, तब सब एकत्र कर देते हैं, निष्पक्ष बनाते हैं। इसीलिए तो हमने तीनों मंत्र साथ में लिखे हैं । अर्थात् उन सारे मंत्रों को एक साथ बोलने पर मनुष्य का कल्याण ही हो जाये।
पक्षपात से ही अकल्याण
प्रश्नकर्ता : ये त्रिमंत्र किन संयोगों में बँट गये होंगे ?
दादाश्री : अपना फ़िरका (संप्रदाय) चलाने के लिए। यह हमारा सही है। और जो खुद को सही बतायेगा वह सामनेवाले को गलत कहता है। यह बात भगवान को सही लगेगी क्या? भगवान को तो दोनों बराबर हैं न? अर्थात् न तो खुद का कल्याण हुआ और न ही सामनेवाले का कल्याण हुआ, सभी का अकल्याण किया इन लोगों ने।
फिर भी इन फ़िरकों को तोड़ने की आवश्यकता नहीं है, फ़िरके रखना ज़रूरी है। क्योंकि फर्स्ट स्टान्डर्ड से लेकर मैट्रिक तक भिन्नभिन्न धर्म चाहिए । अलग-अलग मास्टर्स चाहिए। पर इसका मतलब यह नहीं है कि सेकिन्ड स्टान्डर्ड गलत है, यह नहीं होना चाहिए। मैट्रिक में आने पर कोई आदमी कहे कि 'सेकिन्ड स्टान्डर्ड गलत है तो वह कितना गैरवाजिब कहलाये ! सभी स्टान्डर्ड सही हैं मगर समान नहीं हैं।'
त्रिमंत्र, स्वयं को ही हितकर
यह तो एक आदमी कहेगा कि, 'यह हमारा वैष्णव मत है। ' तब दूसरा कहे कि, 'हमारा यह मत है।' अर्थात् इन मतवालों ने लोगों को उलझा दिया है। तब यह त्रिमंत्र निष्पक्ष मंत्र है। यह हिन्दुस्तान के सभी लोगों के लिए है। इसलिए ये त्रिमंत्र बोलोगे तो बहुत फ़ायदा