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त्रिमंत्र
त्रिमंत्र
कहीं भी हों, उनको नमस्कार करता हूँ। कल्याण स्वरूप कौन कहलाता हैं? जिसके लिए मोक्षलक्ष्मी माला पहनाने तैयार हुई हो। मोक्षलक्ष्मी ब्याहने तैयार हुई हो, वे कल्याण स्वरूप कहलाते हैं।
किसलिए शंकर-नीलकंठ ?
हम वहाँ पर महादेवजी के मंदिर में जाकर बोलते हैं न,
'त्रिशुल होते हुए भी जगत ज़हर पीनेवाला, शंकर भी मैं ही और नीलकंठ मैं ही हूँ।'
नाम अकेला बोलने पर अकेले नाम का फल मिलेगा। पर साथसाथ उनकी मूर्ति देखें, तो दोनों फल मिलेंगे। नाम और स्थापना दो फल मिलें तो बहुत हो गया।
प्रश्नकर्ता : 'नमो अरिहंताणं' बोलते समय मन में किस रंग का चिंतन करना चाहिए?
दादाश्री : 'नमो अरिहंताणं' बोलते समय किसी रंग का चिंतन करने की कोई जरूरत नहीं है। और यदि चिंतन करना हो तो आँखे मुंदकर न...मो... अ...रि...हं...ता...णं... ऐसे एक-एक शब्द नज़र आना चाहिए। उससे बहुत अच्छा फल प्राप्त होता है। आँखे मूंदकर बोलिए तो, न...मो... अ...रि...ह...ता...णं... ये अक्षर बोलते समय क्या मन में नहीं पढ़ सकते? अभ्यास करना, तो फिर तुम पढ़ पाओगे।
फिर 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' इसे भी आप आँखें मूंदकर बोलेंगे तो हर अक्षर दिखाई देगा। अक्षरों के साथ पढ़ पायेंगे। आप दो दिन अभ्यास करना, तीसरे दिन बहुत ही सुंदर दिखाई देगा।
मंत्रों का इस तरह चिंतन करना। यही ध्यान कहलाता है। यदि इस त्रिमंत्र का ऐसे ध्यान करें न, तो बहुत सुन्दर ध्यान हो जाये।
ॐ नमः शिवाय... प्रश्नकर्ता : 'ॐ नमः शिवाय' विस्तार से समझाइये।
दादाश्री : इस दुनिया में जो कल्याण स्वरूप हुए हों और जो जीवित हों, जिनका अहंकार खतम हो गया हो, वे सभी शिव कहलाते हैं। शिव नाम का कोई मनुष्य नहीं है। शिव तो खुद कल्याण स्वरूप ही हैं। इसलिए जो खुद कल्याण स्वरूप हुए हैं और दूसरों को कल्याण की राह दिखाते हैं, उनको नमस्कार करता हूँ।
जो कल्याण स्वरूप होकर बैठे हैं, वे चाहे हिन्दुस्तान में हों या
मैं ही शंकर और मैं ही नीलकंठ, किस लिए कहा? कि इस संसार में जिसने जिसने भी जहर पिलाया वह सारा का सारा पी गये। और अगर आप पी जायें तो आप भी शंकर हो जायेंगे। कोई गाली दे, कोई अपमान करे तो भी आशीर्वाद देकर, समभाव से सारा का सारा जहर पी जायें तो आप शंकर होंगे। वैसे समभाव रह नहीं सकता पर आशीर्वाद देने पर समभाव आयेगा। अकेला समभाव रखने जाते हैं तो विषमभाव हो जाता है।
महादेवजी ज़हर (सांसारिक कष्ट) के सारे गिलास पी गये थे। जिसने गिलास दिया, उसे पी गये। वैसे हम भी ऐसे गिलास पीकर महादेवजी हुए हैं। आपको भी महादेवजी होना हो तो ऐसा करना। अभी भी समय है। पाँच-दस साल पी सको तो भी बहुत हो गया। तो आप भी महादेवजी हो जायेंगे। पर आप तो वह गिलास पिलाये उससे पहले उसको ही पिला देते हैं ! ले, मुझे महादेवजी नहीं होना, तू महादेवजी हो जा', ऐसा कहते हैं।
शिवोहम् कब बोला जाये ? प्रश्नकर्ता : कुछ लोग 'शिवोहम्, शिवोहम्' ऐसा बोलते हैं, वह क्या है?