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सेवा-परोपकार
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सेवा-परोपकार
सेवा से जीवन में सुख-संपत्ति पहली माँ-बाप की सेवा, जिसने जन्म दिया उनकी। फिर गुरु की सेवा। गरु और माँ-बाप की सेवा तो अवश्य होनी चाहिए। यदि गुरु अच्छे नहीं हों, तो सेवा छोड़ देनी चाहिए।
प्रश्नकर्ता : अभी माँ-बाप की सेवा नहीं करते हैं, उसका क्या? तो कौन-सी गति होती है?
दादाश्री : माँ-बाप की सेवा नहीं करें वे इस जन्म में सुखी नहीं होते हैं। माँ-बाप की सेवा करने का प्रत्यक्ष उदाहरण क्या? तब कहें कि सारी ज़िन्दगी पर्यंत दु:ख नहीं आता। अड़चनें भी नहीं आतीं, माँबाप की सेवा से।
हमारे हिन्दुस्तान का विज्ञान तो बहुत सुंदर था। इसलिए तो शास्त्रकारों ने प्रबंध किया था कि माँ-बाप की सेवा करना। जिससे कि आपको जिन्दगी में कभी धन का दुःख नहीं पड़ेगा। अब वह न्यायसंगत होगा कि नहीं यह बात अलग है, मगर माँ-बाप की सेवा अवश्य करने योग्य है। क्योंकि यदि आप सेवा नहीं करोगे, तो आप किस की सेवा पाओगे? आपकी आनेवाली पीढी कैसे सीखेगी कि आप सेवा करने लायक हो? बच्चे सब देखा करते हैं। वे देखेंगे कि हमारे फादर ने कभी उनके बाप की सेवा नहीं की है! फिर संस्कार तो नहीं ही पड़ेंगे न?
के लोग माँ-बाप या गुरु की सेवा ही नहीं करते न? वे सभी लोग दुखी होनेवाले हैं।
महान उपकारी, माँ-बाप जो मनुष्य माँ-बाप का दोष देखे, उनमें कभी बरकत ही नहीं आती। पैसेवाला बने शायद, पर उसकी आध्यात्मिक उन्नति कभी नहीं होती। माँ-बाप का दोष देखने नहीं चाहिए। उपकार तो भूलें ही किस तरह? किसी ने चाय पिलाई हो, तो उसका उपकार नहीं भूलते तो हम माँ-बाप का उपकार भूलें ही किस तरह? तू समझ गया? हं... अर्थात् बहुत उपकार मानना चाहिए। बहुत सेवा करना, मदर-फादर की बहुत सेवा करनी चाहिए।
इस दुनिया में तीन का महान उपकार है। उस उपकार को छोड़ना ही नहीं है। फादर-मदर और गुरु का! हमें जो रास्ते पर लाए हों उनका, इन तीनों का उपकार भुलाया जाए ऐसा नहीं है।
'ज्ञानी' की सेवा का फल हमारा सेव्य पद गुप्त रखकर सेवक भाव से हमें काम करना है। 'ज्ञानी पुरुष' तो सारे 'वर्ल्ड' के सेवक और सेव्य कहलाते हैं। सारे संसार की सेवा भी 'मैं' ही करता हैं और सारे संसार की सेवा भी 'मैं' लेता हैं। यह यदि तेरी समझ में आ जाए तो तेरा काम निकल जाए ऐसा है।
'हम' यहाँ तक की जिम्मेदारी लेते हैं कि कोई मनुष्य हमसे मिलने आया हो तो उसे 'दर्शन' का लाभ प्राप्त होना ही चाहिए। 'हमारी' कोई सेवा करे तो हमारे सिर उसकी जिम्मेवारी आ पड़ती है और हमें उसे मोक्ष में ले ही जाना पड़ता है।
जय सच्चिदानंद
प्रश्नकर्ता : मेरा तात्पर्य यह था कि पुत्र का पिता के प्रति फ़र्ज क्या है?
दादाश्री : पुत्रों को पिता के प्रति फ़र्ज़ अदा करना चाहिए और पुत्र यदि फ़र्ज अदा करें, तो उन्हें फायदा क्या मिलेगा? माँ-बाप की जो पुत्र सेवा करेंगे, उन्हें कभी भी पैसों की कमी नहीं रहेगी. उनकी सारी ज़रूरतें पूरी होगी और गुरु की सेवा करे, वह मोक्ष पाता है। पर आज