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________________ सत्य-असत्य के रहस्य १७ रिलेटिव सत्य है, इसलिए यह दिखता है वह भ्रांति नहीं है, यह मृगतृष्णा नहीं है। आप आत्मा हो वह रियल सत्य है, वह सनातन है। मिथ्या मानें तो भगवान की भक्ति होगी ? ! भक्ति भी मिथ्या हो गई (!) इसलिए जगत् मिथ्या है, वह बात ही गलत है। यानी लोग उल्टा समझे हैं। उन्हें सही बात समझानी चाहिए न? ! यह भी सत्य है पर रिलेटिव सत्य है। प्रश्नकर्ता: कहते हैं न कि जगत् पूरा सोने का हो जाए, पर हमारे लिए तृणवत् है? ! 1 दादाश्री : तृणवत् तो है, पर तृणवत् वह अलग दशा है प्रश्नकर्ता: सकल जगत् को झूठन कहा है वह ? दादाश्री : झूठन वह भी किसी खास दशा में भी नहीं कहलाता। हम जगत् को जैसा है वैसा ही कहते हैं। जगत् झूठन जैसा एक व्यक्ति ने मुझे कहा कि, 'आप इस जगत् को रिलेटिव सत्य क्यों कहते हैं? पहले के शास्त्रकारों ने इस जगत् को मिथ्या कहा है न!' तब मैंने कहा, 'वह जो मिथ्या कहा है वह साधु आचार्यों के लिए कहा है, त्यागियों के लिए कहा है।' यानी वे संसारियों से नहीं कहते, साधकों से कहते हैं। उसे इन व्यवहार के संसारियों ने पकड़ लिया है। अब यह भूल ही हो जाती है न! लोग उल्टा समझे। लोग तो चुपड़ने की दवाई पी जाएँ वैसे हैं। जिन्होंने यह दवाई रखी होगी, यह शब्द उस अपेक्षा से कहा हुआ है। त्यागी लोगों को त्याग करने के लिए अपेक्षा से कहा हुआ है। अब चुपड़ने की दवाई पी जाएँ तो क्या होगा? खतम हो जाएँगे, सीधा हो जाएगा ! और 'जगत् मिथ्या' कहें, तब साधकों की इसमें से रुचि खतम हो जाती है और आत्मा की तरफ उनका चित्त रहा करता है। इसलिए 'मिथ्या' कहा है। वह तो एक 'हैल्पिंग प्रोब्लेम' (समस्याओं में सहायता करनेवाला) है। वह कोई वास्तव में एक्ज़ेक्टनेस नहीं है। १८ सत्य-असत्य के रहस्य तो ही सत्य के मिलें स्पष्टीकरण इसलिए हमने सत्य, रिलेटिव सत्य और मिथ्या ऐसे तीन भाग किए हैं। जब कि जगत् ने दो ही भाग किए हैं, सत्य और मिथ्या । तो दूसरा भाग लोगों को एक्सेप्ट होता नहीं है न! 'चंदूभाई ने मेरा बिगाड़ा' इतना ही सुनने में आया हो, अब कहनेवाला भूल गया हो बाद में, पर आपको यह बात रात को परेशान करती है। उसे मिथ्या कैसे कहा जाए? और दीवार को हम पत्थर मारें और फिर हम सो जाएँ, तब भी दीवार को कुछ नहीं होता। इसलिए हमने तीन भाग किए कि एक सत्य, रिलेटिव सत्य और मिथ्या ! तो उसका स्पष्ट ब्यौरा मिल जाता है। नहीं तो स्पष्टीकरण ही नहीं हो न ! यह तो सिर्फ आत्मा को ही सत्य कहें तो यह जगत् क्या बिलकुल असत्य ही है? मिथ्या है यह? इसे मिथ्या किस प्रकार कहा जाए ? ! यदि मिथ्या है तो अंगारों में हाथ डालकर देखो। तब तुरन्त ही पता चल जाएगा कि 'मिथ्या है या नहीं? !' जगत् रिलेटिव सत्य है। यह जिसका रोना आता है, दुःख होता है, जिससे जल जाते हैं, उसे मिथ्या कैसे कहा जाए ? ! प्रश्नकर्ता: जगत् मिथ्या यानी इल्युजन नहीं है? दादाश्री : इल्युजन (भ्रम) है ही नहीं जगत् ! जगत् है, पर सापेक्षित सत्य है। हम इस दीवार को मारें और मनुष्य को मारें उसमें फर्क पड़ जाएगा। दीवार को मिथ्या कहना हो तो कह सकते हैं। लपटें उठती हुई दिखती हैं पर फिर दाग़ नहीं पड़ा हो, वह इल्युजन कहलाता है। 'मिथ्या' कहकर तो सब बिगाड़ दिया है। जिसके आधार पर जगत् चलता है, उसे मिथ्या कहा ही किस प्रकार जाए? ! यह जगत् तो आत्मा का विकल्प है। यह कोई ऐसी-वैसी वस्तु नहीं है। उसे मिथ्या किस तरह से कह सकते हैं? ! सुख का सेलेक्शन यह रिलेटिव सत्य टिकनेवाला नहीं है। जिस तरह यह सुख
SR No.009602
Book TitleSatya Asatya Ke Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages31
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size212 KB
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