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क्लेश रहित जीवन
यह सब उलझा हुआ है! और वह आपको अकेले को ही है, ऐसा नहीं है, पूरे जगत् को है। 'द वर्ल्ड इज द पज़ल इटसेल्फ।' यह 'वर्ल्ड' इटसेल्फ पज़ल हो गया है।
क्लेश रहित जीवन
१. जीवन जीने की कला
ऐसी 'लाइफ' में क्या सार? इस जीवन का हेतु क्या होगा, वह समझ में आता है? कोई हेतु तो होगा न? छोटे थे, फिर बूढ़े होते हैं और फिर अरथी निकालते हैं। अरथी निकालते हैं, तब दिया हुआ नाम ले लेते हैं। यहाँ आए कि तुरन्त ही नाम दिया जाता है, व्यवहार चलाने के लिए! जैसे ड्रामे में भर्तृहरि नाम देते हैं न? 'ड्रामा' पूरा तब फिर नाम पूरा। ऐसे यह व्यवहार चलाने के लिए नाम देते हैं, और उस नाम पर बंगला, मोटर, पैसे रखते हैं और अरथी निकालते हैं, तब वह सब ज़ब्त हो जाता है। लोग जीवन गुजारते हैं और फिर गुज़र जाते हैं। ये शब्द ही 'इटसेल्फ' कहते हैं कि ये सब अवस्थाएँ हैं। गुजारा का मतलब ही राहखर्च! अब इस जीवन का हेतु मौज-मजे करना होगा या फिर परोपकार के लिए होगा? या फिर शादी करके घर चलाना, वह हेतु होगा? यह शादी तो अनिवार्य होती है। किसी को शादी अनिवार्य न हो तो शादी हो ही नहीं। परन्तु बरबस शादी होती है न?! यह सब क्या नाम कमाने का हेतु है? पहले सीता और ऐसी सतियाँ हो गई हैं, जिनका नाम हो गया। परन्तु नाम तो यहाँ का यहाँ रहनेवाला है। पर साथ में क्या ले जाना है? आपकी गुत्थियाँ !
आपको मोक्ष में जाना हो तो जाना, और नहीं जाना हो तो मत जाना। परन्तु यहाँ आपकी गुत्थियों के सभी खुलासे कर जाओ। यहाँ तो हरएक प्रकार के खुलासे होते हैं। ये व्यवहारिक खुलासे होते हैं तो भी वकील पैसे लेते हैं ! पर यह तो अमूल्य खुलासा, उसका मूल्य ही नहीं होता न।
धर्म वस्तु तो बाद में करनी है, परन्तु पहले जीवन जीने की कला जानो और शादी करने से पहले बाप होने का योग्यतापत्र प्राप्त करो। एक इंजन लाकर उसमें पेट्रोल डालें और उसे चलाते रहें, पर वह मीनिंगलेस जीवन किस काम का? जीवन तो हेतु सहित होना चाहिए। यह तो इंजन चलता रहता है, चलता ही रहता है, वह निरर्थक नहीं होना चाहिए। उससे पट्टा जोड़ दें, तब भी कुछ पीसा जाए। पर यह तो सारी ज़िन्दगी पूरी हो जाए, फिर भी कुछ भी पीसा नहीं जाता और ऊपर से अगले भव के गुनाह खड़े करता है।
यह तो लाइफ पूरी फ्रेक्चर हो गई है। किसलिए जीते हैं, उसका भान भी नहीं रहा कि यह मनुष्यसार निकालने के लिए मैं जीता हूँ! मनुष्यसार क्या है? तब कहे, जिस गति में जाना हो, वह गति मिले या फिर मोक्ष में जाना हो तो मोक्ष में जाया जा सके। ऐसे मनुष्यसार का किसी को भान ही नहीं है, इसलिए भटकते रहते हैं।
परन्तु वह कला कौन सिखलाए? आज जगत् को हिताहित का भान ही नहीं है, संसार के हिताहित का कुछ लोगों को भान होता है, क्योंकि वह बुद्धि के आधार पर कितनों ने निश्चित किया होता है। पर वह संसारी भान कहलाता है कि संसार में किस तरह मैं सुखी होऊँ? असल में तो यह भी करेक्ट नहीं है। करेक्टनेस तो कब कहलाती है कि जीवन जीने की कला सीखा हो तब। यह वकील हुआ, फिर भी कोई जीवन जीने की कला आई नहीं। तब डॉक्टर बिना फिर भी वह कला नहीं आई। यह आप आर्टिस्ट की कला सीख लाए या दूसरी कोई भी कला सीख लाए, वह कोई जीवन जीने की कला नहीं कहलाती। जीवन जीने की कला तो, कोई मनुष्य अच्छा जीवन जीता हो, उसे हम कहें कि आप यह किस तरह जीवन जीते हो, ऐसा कुछ मुझे