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५. समझ से सोहे गृहसंसार मुझे जो कहना था उस पर से पूरा ही मैं पलट गया, मैंने उनसे कहा, मैं ऐसा नहीं कहना चाहता हूँ। आप चाँदी के बरतन देना और ऊपर से पाँच सौ एक रुपये देना, उन्हें काम लगेंगे।' 'हं... इतने सारे रुपये तो कभी दिए जाते होंगे? आप तो जब देखो तब भोले के भोले ही रहते हो, जिस किसी को देते ही रहते हो।' मैंने कहा, 'वास्तव में मुझे तो कुछ आता ही नहीं।
देखो, यह मेरा मतभेद पड़ रहा था, पर किस तरह से सँभाल लिया पलटकर! अंत में मतभेद नहीं पड़ने दिया। पिछले तीस-तीस वर्षों से हम में नाम मात्र का भी मतभेद नहीं हुआ है। बा भी देवी जैसे हैं। मतभेद किसी जगह पर हमने पड़ने ही नहीं दिए। मतभेद पड़ने से पहले ही हम समझ जाते हैं कि यहाँ से पलट डालो, और आप तो दाएँ और बाएँ, दोनों तरफ ही बदलना जानते हो कि ऐसे पेच चढ़ेंगे या ऐसे पेच चढ़ेंगे। हमें तो सत्रह लाख तरह के पेच घुमाने आते हैं। परन्तु गाड़ी रास्ते पर ला देते हैं, मतभेद होने नहीं देते। अपने सत्संग में बीसेक हज़ार लोग और चारेक हजार महात्मा हैं, पर हमारा किसी के साथ एक भी मतभेद नहीं है। जुदाई मानी ही नहीं मैंने किसी के साथ!
जहाँ मतभेद है वहाँ अंशज्ञान है और जहाँ मतभेद ही नहीं, वहाँ विज्ञान है। जहाँ विज्ञान है, वहाँ सर्वांशज्ञान है। सेन्टर में बैठे, तभी मतभेद नहीं रहते। तभी मोक्ष होता है। पर डिग्री ऊपर बैठो और हमारा-तुम्हारा' रहे तो उसका मोक्ष नहीं होता। निष्पक्षपाती का मोक्ष होता है।
समकिती की निशानी क्या? तब कहे, घर में सब लोग उल्टा कर डालें फिर भी खुद सीधा कर डाले। सभी बातों में सीधा करना वह समकिती की निशानी है। इतना ही पहचानना है कि यह मशीनरी कैसी है, उसका 'फ्यूज़' उड़ जाए तो किस तरह से 'फ्यूज़' ठीक करना है। सामनेवाले की प्रकृति के साथ एडजस्ट होते आना चाहिए। हमें तो सामनेवाले का 'फ्यूज' उड़ जाए, तब भी हमारा एडजस्टमेन्ट होता है। पर सामनेवाले का एडजस्टमेन्ट टूटे तो क्या हो? 'फ्यूज़' गया। इसलिए फिर तो वह दीवार से टकराता है, दरवाजों से टकराता है, पर वायर टूटता नहीं
क्लेश रहित जीवन है। इसीलिए कोई फ्यूज़ डाल दे तो वापिस रास्ते पर आए, नहीं तो तब तक वह उलझता रहता है।
संसार है इसीलिए घाव तो पड़नेवाले ही हैं न? और पत्नी भी कहेगी कि अब घाव भरेंगे नहीं। परन्तु संसार में पड़े हैं, इसीलिए वापिस घाव भर जाते हैं। मूर्च्छितपना है न? मोह के कारण मूर्छा है। मोह के कारण घाव भर जाते हैं। यदि घाव नहीं भरते. तब तो वैराग्य ही आ जाता न?! मोह किसका नाम कहलाता है? सभी, अनुभव बहुत हुए हों परन्तु भूल जाता है। डायवोर्स लेते समय निश्चित करता है कि अब किसी स्त्री से साथ शादी नहीं करनी, फिर भी वापिस साहस करता है।
_...यह तो कैसा फँसाव? शादी नहीं करोगे तो जगत् का बैलेन्स किस तरह रहेगा? शादी कर न। भले ही शादी करे! 'दादा' को उसमें हर्ज नहीं है, परन्तु हर्ज नासमझी का है। हम क्या कहना चाहते हैं कि सब करो, परन्तु बात को समझो कि हक़ीक़त क्या है।
भरत राजा ने तेरह सौ रानियों के साथ पूरी जिन्दगी निकाली और उसी भव में मोक्ष प्राप्त किया! तेरह सौ रानियों के साथ !!! इसलिए बात को समझना है। समझकर संसार में रहो, साधु होने की ज़रूरत नहीं है। यदि यह नहीं समझ में आया तो साधु होकर एक कोने में पड़े रहो। साधु तो जिसे स्त्री के साथ संसार में रास नहीं आता हो वह बनता है। और स्त्री से दूर रहा जा सकता है या नहीं ऐसी शक्ति साधने के लिए एक कसरत है।
संसार तो टेस्ट एक्जामिनेशन है। वहाँ टेस्टेड होना है। लोहा भी टेस्टेड हुए बगैर चलता नहीं है तो मोक्ष में अनटेस्टेड चलता होगा?
इसलिए मूर्च्छित होने जैसा यह जगत् नहीं है। मूर्छा के कारण जगत् ऐसा दिखता है। और मार खा-खाकर मर जाते है ! भरत राजा के तेरह सौ रानियाँ थीं, तब उनकी क्या दशा होगी? यहाँ घर में एक रानी हो तब भी