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५. समझ से सोहे गृहसंसार
मतभेद से पहले ही सावधानी अपने में कलुषित भाव रहा ही न हो, उसके कारण सामनेवाले को भी कलुषित भाव नहीं होगा। हम नहीं चिढ़े तब वे भी ठंडे हो जाते हैं। दीवार जैसे हो जाना चाहिए, तब फिर सुनाई नहीं देगा। हमें पचास साल हो गए पर कभी भी मतभेद ही नहीं हुआ। हीराबा के हाथ से घी दुल रहा हो, तब भी मैं देखता ही रहता हूँ। हमें तो उस समय ज्ञान हाजिर रहता है कि वे घी ढोलें ही नहीं। मैं कहूँ कि ढोलो तब भी नहीं ढोलें। जान-बूझकर कोई घी ढोलता होगा? ना। फिर भी घी ढुलता है, वह देखने जैसा है, इसलिए अपने देखो! हमें मतभेद होने से पहले ज्ञान ऑन द मोमेन्ट हाज़िर रहता है।
_ 'मेरी हालत मैं ही जानता हूँ बोले, इसलिए बीवी खुश हो जाती है और हमारे लोग तो हालत या कुछ भी कहते नहीं हैं। अरे तेरी हालत कह तो सही कि अच्छी नहीं है। इसलिए खुश रहना।'
सबकी हाजिरी में, सूर्यनारायण की साक्षी में, पुरोहित की साक्षी में शादी की थी, तब पुरोहित ने सौदा किया कि 'समय वर्ते सावधान' तो तुझे सावधान रहना भी नहीं आया? समय के अनुसार सावधान रहना चाहिए। पुरोहित बोलते है 'समय वर्ते सावधान' वह पुरोहित समझे, शादी करनेवाला क्या समझे? सावधान का अर्थ क्या है? तब कहे, 'बीवी उग्र हो गई हो, वहाँ तू ठंडा हो जाना, सावधान हो जाना।' अब दोनों जने झगड़ें तब पड़ोसी देखने आएँगे या नहीं आएँगे? फिर तमाशा होगा या नहीं होगा?
और फिर वापिस इकट्ठे नहीं होना हो तो लड़ो। अरे, बँटवारा ही कर डालो। तब कहें, 'ना, कहाँ जाएँगे?' यदि वापिस एक होना है तो फिर किसलिए लडते हो? हमें ऐसे सावधान नहीं होना चाहिए? स्त्री तो समझो, जाति ऐसी है कि नहीं बदलेगी, इसीलिए हमें बदलना पड़ेगा। वह सहज जाति है, वह बदले ऐसी नहीं है।
पत्नी चिढ़े और कहे, 'मैं आपकी थाली लेकर नहीं आनेवाली, आप खुद आओ। अब आपकी तबियत अच्छी हो गई है और चलने लगे हो।
क्लेश रहित जीवन ऐसे तो लोगों के साथ बातें करते हो, घूमते-फिरते हो, बीडियाँ पीते हो और ऊपर से टाइम हो तब थाली माँगते हो। मैं नहीं आनेवाली!' तब हम धीरे से कहें, 'आप नीचे थाली में निकालो मैं आ रहा हूँ।' वह कहती है, 'नहीं आनेवाली।' उससे पहले ही हम कहें कि मैं आ रहा हूँ, मेरी भूल हो गई लो। ऐसा करें तो कुछ रात अच्छी बीते। नहीं तो रात बिगड़े। वे टिटकारी मारते यहाँ सो गए हो और यह पत्नी यहाँ टिटकारी मार रही होती है। दोनों को नींद आती नहीं है। सुबह वापिस चाय-पानी होता है, तब चाय का प्याला पटककर रखकर, टिटकारी करती है या नहीं करती? वह तो यह पत्नी भी तुरन्त समझ जाती है कि टिटकारी की। यह कलह का जीवन है। सारे वर्ल्ड में ये हिन्दू बिताते हैं जीवन क्लेश में।
क्लेश बगैर का घर, मंदिर जैसा जहाँ क्लेश हो, वहाँ भगवान का वास नहीं रहता है। इसलिए हम भगवान से कहें 'साहब, आप मंदिर में रहना, मेरे घर आइएगा नहीं!' हम मंदिर और अधिक बनाएँगे, परन्तु घर आइएगा नहीं!' जहाँ क्लेश न हो, वहाँ भगवान का वास निश्चित है। उसकी मैं आपको गारन्टी देता हूँ और क्लेश तो बुद्धि और समझ से खतम किया जा सके ऐसा है। मतभेद टले उतनी जागृति तो प्राकृतिक गुण से भी आ सकती है, उतनी बुद्धि भी आ सके ऐसा है। जान लिया, उसका नाम कि किसी के साथ मतभेद न पड़े। मति पहुँचती नहीं, इसलिए मतभेद होते हैं। मति फुल पहुंचे, तो मतभेद नहीं हों। मतभेद, वे टकराव हैं। वीकनेस हैं।
कोई झंझट हो गई हो तो आप थोड़ी देर चित्त को स्थिर करो और विचार करो तो आपको सूझ पड़ेगी। क्लेश हुआ इसलिए भगवान तो चले जाएंगे या नहीं चले जाएंगे?
प्रश्नकर्ता : चले जाएंगे।
दादाश्री : भगवान कुछ व्यक्तियों के यहाँ से जाते ही नहीं, परन्तु क्लेश होता हो, तब कहते हैं, 'चलो यहाँ से, हमें यहाँ अच्छा नहीं लगेगा।' इस कलह में मुझे नहीं पसंद आएगा, इसलिए देरासर और मंदिरों में जाते