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त्रिमंत्र
व्यवहार और धर्म सिखलाया जगत् को
एक पुस्तक व्यवहारिक ज्ञान की बनाओ। इससे लोगों का व्यवहार सुधरे तब भी बहुत हो गया। और मेरे शब्द हैं उससे उनका मन बदल जाएगा। शब्द मेरे ही रखना। शब्दों में बदलाव मत करना । वचनबलवाले शब्द हैं, मालिकी बिना के शब्द हैं। परन्तु उन्हें सुव्यवस्थित करके रखना है आपको।
मेरा यह जो व्यावहारिक ज्ञान है न, वह तो ऑल ऑवर वर्ल्ड हर एक को काम में आएगा। पूरी मनुष्यजाति के काम आएगा।
हमारा व्यवहार बहुत ऊँचा था। वह व्यवहार सिखलाता हूँ और धर्म भी सिखलाता हूँ। स्थूलवालों को स्थूल, सूक्ष्मवालों को सूक्ष्म परन्तु हर एक को काम में आएगा। इसलिए ऐसा कुछ करो कि लोगों को हैल्पफुल हो। मैंने बहुत पुस्तकें पढ़ी हैं, इन लोगों को मदद हो ऐसी। परन्तु कुछ भला हो ऐसा नहीं था। थोड़ी-बहुत हैल्प होगी। बाकी जीवन सुधारे ऐसा होता ही नहीं! क्योंकि वह तो मन का, डॉक्टर ऑफ माइन्ड हो तभी होता है ! वह, आई एम द फुल डॉक्टर ऑफ माइन्ड!
- दादाश्री