________________
४. फैमिलि आर्गेनाइजेशन
रखना चाहिए। अब ग्लास हो और उसे आप हथौड़े मारते रहो तो क्या होगा? वैसे, घर के लोगों को काँच की तरह सँभालना चाहिए। आपको उस बंडल पर चाहे जितनी भी चिढ़ चढ़ी हो, फिर भी उसे नीचे फेंकोगे? तुरन्त पढ़ लोगे कि 'ग्लास विद केर'! घर में क्या होता है कि कुछ हुआ तो आप तुरन्त ही बेटी को कहने लग जाते हो, 'क्यों ये पर्स खो डाला? कहाँ गई थी? पर्स किस तरह खो गया?' यह आप हथौड़े मारते रहते हो। यह 'ग्लास विद केर' समझे तो फिर स्वरूपज्ञान नहीं दिया हो, तब भी समझ जाए।
इस जगत् को सुधारने का रास्ता ही प्रेम है। जगत् जिसे प्रेम कहता है वह प्रेम नहीं है, वह तो आसक्ति है। ये बेटी को प्रेम करते हो, पर वह प्याला फोड़े तो प्रेम रहता है? तब तो चिढ़ जाते हैं। मतलब, वह आसक्ति है।
बेटे-बेटियाँ हैं, उनके आपको संरक्षक की तरह, ट्रस्टी की तरह रहना है। उनकी शादी करने की चिंता नहीं करनी होती है। घर में जो हो जाए उसे 'करेक्ट' कहना, 'इन्करेक्ट' कहोगे तो कोई फायदा नहीं होगा। गलत देखनेवाले को संताप होगा। एकलौता बेटा मर गया तो करेक्ट है, ऐसा किसी से नहीं कह सकते। वहाँ तो ऐसा ही कहना पड़े कि, बहुत गलत हो गया। दिखावा करना पड़ेगा। ड्रामेटिक करना पड़ेगा। बाकी अंदर तो करेक्ट ही है, ऐसा करके चलें। प्याला जब तक हाथ में है तब तक प्याला है! फिर गिर पड़े और फूट जाए तो करेक्ट है ऐसा कहना चाहिए। बेटी से कहना कि सँभालकर धीरे से लेना पर अंदर करेक्ट है ऐसे कहना । क्रोध भरी वाणी न निकले तब फिर सामनेवाले को नहीं लगेगी। मुँह पर बोल दें, केवल वही क्रोध नहीं कहलाता है, अंदर कुढ़े वह भी क्रोध है। यह सहन करना वह तो डबल क्रोध है। सहन करना यानी दबाते रहना, वह तो एक दिन स्प्रिंग की तरह उछलेगा तब पता चलेगा। सहन किसलिए करना है? इसका तो ज्ञान से हल ला देना है। चूहे ने मूछें काटी वह 'देखना ' है और 'जानना' है, उसमें रोना किसलिए? यह जगत् देखने-जानने के लिए है।
४४
क्लेश रहित जीवन
घर, एक बगीचा
एक भाई मुझे कहते हैं कि, दादा, घर में मेरी पत्नी ऐसा करती है, वैसा करती है। तब मैंने कहा कि, 'पत्नी को पूछो कि वह क्या कहती है?' वह कहती है कि मेरा पति ऐसा बेकार है। बिना अक्कल का है। अब इसमें आपके अकेले का क्या करने को खोजते हो? तब वे भाई कहते हैं कि मेरा घर तो बिगड़ गया है। बच्चे बिगड़ गए हैं। बीवी बिगड़ गई है। मैंने कहा, 'बिगड़ नहीं गया कुछ भी आपको वह देखना नहीं आता है। आपका घर आपको देखते आना चाहिए।' आपका घर तो बगीचा है। सत्युग, त्रेता और द्वापरयुग में घर यानी खेत जैसे होते थे। किसी खेत में केवल गुलाब ही, किसी खेत में केवल चंपा, किसी में केवड़ा, ऐसा था । अब इस कलियुग में खेत नहीं रहे, बगीचे बन गए हैं। इसलिए एक गुलाब, एक मोगरा और एक चमेली ! अब आप घर में बुजुर्ग, गुलाब हों और
में सबको गुलाब बनाने फिरते हो, दूसरे फूलों से कहते हो कि मेरे जैसा क्यों नहीं है। तू तो सफेद है। तेरा सफेद फूल क्यों आया? गुलाबी फूल ला । ऐसे सामनेवाले को मारते रहते हो! अरे ! फूल को देखना तो सीखो। आपको इतना तक करना है कि यह कैसी प्रकृति है? किस प्रकार का फूल है ? फल-फूल आए, तब तक पौधे को देखते रहना है कि यह कैसा पौधा है? मुझमें काँटे हैं और इसमें नहीं हैं। मेरा गुलाब का पौधा है, इसका गुलाब का नहीं है। फिर फूल आएँ, तब हम जानें कि ओहोहो ! यह तो मोगरा है। इसलिए उसके साथ मोगरे के हिसाब से व्यवहार रखना चाहिए। चमेली हो तो उसके हिसाब से वर्तन रखना चाहिए। सामनेवाले की प्रकृति के अनुसार वर्तन रखना चाहिए। पहले तो घर में बूढ़े होते थे तब फिर उनके कहे अनुसार बच्चे चलते थें, बहुएँ चलती थीं। जब कि कलियुग में अलग-अलग प्रकृतियाँ हैं, वे किसी से मेल खाते नहीं, इसलिए इस काल में तो घर में सबकी प्रकृति के स्वभाव के साथ एडजस्ट होकर ही काम लेना चाहिए। वह एडजस्ट नहीं होगा तो रिलेशन बिगड़ जाएँगे । इसीलिए बगीचे को सँभालो और गार्डनर बन जाओ। वाइफ की अलग प्रकृति होती है, बेटों की अलग, बेटियों की अलग-अलग प्रकृति होती