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१. जीवन जीने की कला
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हमारी हलवाई की दुकान हो फिर किसी के वहाँ जलेबी मोल लेने जाना पड़ता है? जब खानी हो तब खा सकते हैं। दुकान ही हलवाई की हो वहाँ फिर क्या? इसलिए तू सुख की ही दुकान खोलना । फिर कोई उपाधी ही नहीं।
आपको जिसकी दुकान खोलनी हो उसकी खोली जा सकती है। यदि हररोज न खोली जा सके तो सप्ताह में एक दिन रविवार के दिन तो खोलो ! आज रविवार है, 'दादा' ने कहा है कि सुख की दुकान खोलनी है। आपको सुख के ग्राहक मिल आएँगे। 'व्यवस्थित' का नियम ही ऐसा है कि ग्राहक मिलवा देता है। व्यवस्थित का नियम यह है कि तूने जो निश्चित किया हो उस अनुसार तुझे ग्राहक भिजवा देता है।
जिसे जो अच्छा लगता हो, उसे उसकी दुकान खोलनी चाहिए। कितने तो उकसाते ही रहते हैं। उसमें से उन्हें क्या मिलता है? किसी को हलवाई का शौक हो तो वह किसकी दुकान खोलेगा ? हलवाई की ही न। लोगों को किसका शौक है? सुख का । सुख की ही दुकान खोल, जिससे लोग सुख पाएँ और खुद के घरवाले भी सुख भोगें । खाओ, पीओ और मज़े करो। आनेवाले दुःख के फोटो मत उतारो। सिर्फ नाम सुना कि चंदूभाई आनेवाले हैं, अभी तक आए नहीं हैं, सिर्फ पत्र ही आया है, तब से ही उसके फोटो खींचने शुरू कर देते हैं।
ये 'दादा' तो 'ज्ञानी पुरुष' उनकी दुकान कैसी चलती है ? पूरा दिन ! यह दादा की सुख की दुकान, उसमें किसी ने पत्थर डाला हो तब भी फिर उसे गुलाबजामुन खिलाते हैं। सामनेवाले को थोड़े ही पता है कि यह सुख की दुकान है इसलिए यहाँ पत्थर नहीं मारा जाए? वह तो निशाना लगाए बिना जहाँ मन में आया वहाँ मारता है।
हमें किसी को दुःख नहीं देना है, ऐसा निश्चित किया फिर भी देनेवाला तो दे ही जाएगा न? तब क्या करेगा तू? देख मैं तुझे एक रास्ता बताऊँ । तुझे सप्ताह में एक दिन 'पोस्ट ऑफिस' बंद रखना है। उस दिन किसी का मनीऑर्डर स्वीकारना नहीं है और किसी को मनीऑर्डर करना
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क्लेश रहित जीवन
भी नहीं है। और यदि कोई भेजे तो उसे एक तरफ रख देना और कहना कि आज पोस्ट ऑफिस बंद है, कल बात करेंगे। हमारा तो कायम पोस्ट ऑफिस बंद ही होता है।
ये दिवाली के दिन सब किसलिए समझदार हो जाते हैं? उनकी 'बिलीफ़' बदल जाती है, इसलिए आज दिवाली का दिन है, आनंद में जाने देना है ऐसा निश्चित करते हैं, इसलिए उनकी बिलीफ़ बदल जाती है, इसलिए आनंद में रहते हैं। 'हम' मालिक हैं, इसलिए गोठवणी (सेटिंग ) कर सकते हैं। तूने निश्चित किया हो कि आज मुझे हलकापन नहीं करना है। तो तुझसे हलकापन नहीं होगा। ये हफ्ते में एक दिन हमें नियम में रहना है, पोस्ट ऑफिस बंद करके एक दिन बैठना है। फिर चाहे लोग चिल्लाएँ कि आज पोस्ट ऑफिस बंद है ?
बैर खपे और आनंद भी रहे
इस जगत् में किसी भी जीव को किंचित् मात्र दुःख नहीं देने की भावना हो तभी कमाई कहलाती है। ऐसी भावना रोज़ सुबह करनी चाहिए। कोई गाली दे, वह हमें पसंद नहीं हो तो उसे जमा ही करना चाहिए, पता नहीं लगाना है कि मैंने उसे कब दी थी। हमें तो तुरन्त ही जमा कर लेनी चाहिए कि हिसाब पूरा हो गया। और यदि चार वापिस दे दीं तो बहीखाता चलता ही रहेगा, उसे ऋणानुबंध कहते हैं। बही बंद की यानी खाता बंद । ये लोग तो क्या करते हैं कि उसने एक गाली दी हो तो यह ऊपर से चार देता है ! भगवान ने क्या कहा है कि जो रकम तुझे अच्छी लगती हो वह उधार दे और अच्छी नहीं लगती हो, तो उधार मत देना। कोई व्यक्ति कहे कि आप बहुत अच्छे हो तो हम भी कहें कि, 'भाई आप भी बहुत अच्छे हो।' ऐसी अच्छी लगनेवाली बातें उधार दो तो चलेगा।
यह संसार, पूरा हिसाब चुकाने का कारखाना है। बैर तो सास बनकर, बहू बनकर, बेटा बनकर, अंत में बैल बनकर भी चुकाना पड़ता है। बैल लेने के बाद, रुपये बारह सौ चुकाने के बाद, फिर दूसरे दिन वह मर जाता है ! ऐसा है यह जगत् !! अनंत जन्म बैर में ही गए हैं! यह जगत् बैर से