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संपादकीय
जीवन में ऐसे कितने प्रसंग आते है, जब आदमी के मन को समाधान नहीं मीलता कि ऐसा क्यों हो गया ? धरतीकंप में कितने सारे लोग मर गये, बद्री-केदार की यात्रा करनेवाले बर्फ में मर गये, निर्दोष बच्चा जन्म लेते ही अपंग हो गया, किसी की ऐक्सिडन्ट में मृत्यु हो गई... तो यह किस वजह से? बाद में कर्म का सिद्धांत है ऐसा समाधान कर लेते है। मगर कर्म क्या है ? कर्म का फल कैसे भुगतना पडता है ? इसका रहस्य समज में नहीं आता है।
सब लोग कर्म किसे कहते है ? नौकरी-धंधा करे, सत्कार्य करे, धर्म, पूजा-पाठ करे, सारा दिन जो भी करता है, उसे कर्म कहते है। मगर ज्ञानीओं की द्रष्टि से यह कर्म नहीं है, लेकिन कर्मफल है। जो पांच इन्द्रियों से अनुभव में आता है, वह सब कर्मफल है। और कर्म का बीज वह तो बहुत सूक्ष्म है। वह अज्ञानता से 'मैं ने किया', यह कर्ताभाव से कर्म चार्जिग होता है।
कोई आदमी क्रोध करता है और भीतर में पश्चाताप करता है, कोई आदमी क्रोध करके भीतर में खुश होता है कि मैंने ठीक ही किया, तो ही सुधरेगा। तो ज्ञानी की द्रष्टि में क्रोध करना वह तो कर्म का फल है मगर आज नये कर्मबीज भीतर में डाल देता है। भीतर में खशी होती है तो बरा बीज डाल दिया और पश्चाताप करने से नया बीज अच्छा डाल रहा है और जो क्रोध करता है, वह सूक्ष्म कर्म है, उसका फल कोई उसे मारेगाडारेगा। वह कर्मफल का परिणाम इधर ही मिल जाता है। आज क्रोध हो गया, वह पूर्वकर्म का फल आया है।
कर्म का चार्जिंग कैसे होता है ? कर्ताभाव से कर्म चार्जिंग होते हैं। कर्ताभाव किसे कहते हैं ? कर रहा है कोई और 'मैं ने किया ऐसा मान लेते हैं, वो ही कर्ताभाव है।
कर्ताभाव क्यों हो जाता है ? अहंकार से। अहंकार किसे कहते है ? जो खुद नहीं है फिर भी वहाँ मैं हूं' मान लेता है, खुद करता नहीं फिर भी
'मैं ने किया' मान लेता है, वही अहंकार है. खुद देह स्वरूप नही, वाणी स्वरूप नहीं, मन स्वरूप नही, नाम स्वरूप नहीं, फिर भी खुद यह सब 'मैं ही हैं' ऐसा मान लेता है, वही अहंकार है। याने अज्ञानता से अहंकार खडा हो गया है। और उसी से निरंतर कर्मबंधन चालु ही रहता है।
ज्ञानी पुरुष मिल जाये तो अज्ञानता फ्रेकचर कर देते है और खद कौन है, उसका ज्ञान देते है और यह सब कौन कर्ता है, यह भी ज्ञान देते है। तब से अहंकार चला जाता है। नया कर्म चार्ज होना बंध हो जाता है, फिर डिस्चार्ज कर्म ही बाकी रह जाते है। उसका समभाव से निकाल कर देने से मुक्ति हो जाती है।
परम पूज्य दादाजी के पास दो ही घंटे में ज्ञानप्राप्ति हो जाती थी।
कर्म के बीज पूर्वजन्म में डाल देता है और आज इस जन्म में कर्म फल भूगतने पड़ते है। तो यहाँ कर्म का फल देनेवाला कौन? यह रहस्य का पूज्य दादाजी ने समझाया कि only scientific circumstential evidences से यह फल आता है। वह फल भूगतने के टाइम पर अज्ञानता से राग-द्वेष करता है, 'मैं ने किया' मानता है, जिससे नया कर्म चार्ज होता है। ज्ञानी पुरूष नया कर्म चार्ज न हो ऐसा विज्ञान देते हैं। ताकि पिछले जन्मों के फल पूरे हो जायेंगे ओर नया कर्म चार्ज नहीं हुआ तो फिर मुक्ति हो जायेगी।
प्रस्तुत ग्रंथ में परम पूज्य दादा भगवान ने ज्ञान में अवलोकन करके दुनिया को कर्म का सिद्धांत दिया है। वह दादाजी की बानी में संकलित हुआ है। वह बहुत संक्षिप्त में है, फिर भी वाचक को कर्म का सिद्धांत समज में आ जायेगा और जीवन के प्रत्येक प्रसंग में समाधान प्राप्त होगा।
- डॉ. नीरुबहन अमीन के जय सच्चिदानंद