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ज्ञानी पुरुष की पहचान
ज्ञानी पुरुष की पहचान
तो मोक्ष जलदी मिल जाता है।
यहाँ चालीस हजार आदमी इक्टठे होते है तो भी यहाँ किसी भी दिन कोई कायदा-कानून नहीं, 'No law law' याने किसी को भी नुकसान या दु:ख नहीं देता है, वो परम विनय का अर्थ है।
प्रत्यक्ष भक्ति - किस पुरूष की? प्रश्नकर्ता : प्रत्यक्ष भक्ति क्या है?
दादाश्री : 'ज्ञानी पुरूष' अपने आत्मा का रियलाईझ करा दे तो फिर प्रत्यक्ष भक्ति होती है।
प्रश्नकर्ता : याने अंतरात्मा की खोज करने की?
दादाश्री : हाँ, वो ज्ञानी पुरूष करा सकते है, खुद नहीं कर सकते। जो तरणतारण हुआ है, जो पार उतरे है, वो ही तारेंगे।
चाहिये। संजोग नहीं मिले तो क्या करोगे?
भगवान, प्रेम स्वरूप या आनंद स्वरूप? प्रश्नकर्ता : भगवान की प्रेम स्वरूप शक्ति कौन सी है?
दादाश्री : ये देह के साथ जो भगवान प्रगट हो गये है, वो ही प्रेम स्वरूप है। जो कभी कम होता नहीं, कभी बढता नहीं, वो सच्चा प्रेम है। वो ईश्वरीय प्रेम है। ईश्वर खुद प्रेम नहीं करते है। ईश्वर तो ईश्वर ही रहते है। ईश्वर जिसको मिले है, जिसमें संपूर्ण प्रगट हुए है, वो 'ज्ञानी पुरुष' प्रेम स्वरूप ही रहते है। उनको गाली दे तो भी वो प्रेम स्वरूप है और फूल चढाये तो भी प्रेम स्वरूप है। भगवान खद प्रेम स्वरूप नहीं है, भगवान तो भगवान ही है। प्रेम तो जब तक शरीर के साथ भगवान रहते है, वहाँ तक प्रेम है। मुक्त होने पर भगवान सिद्धलोक में चले जाते है, फिर वहाँ प्रेम नहीं है। वहाँ तो परमानंद है, स्वाभाविक आनंद है। एक समान प्रेम हो तो वो एक ही ऐसा हथियार है कि जिससे अपने घर के सभी लोगों को अच्छे से अच्छा संस्कार दे सकते है और इससे संसार भी अच्छा रहता है। नहीं तो प्रेम बढ़ गया तो वो आसक्ति है, इसको राग बोलते है और प्रेम कम हो गया तो वो द्वेष है।
विवेक, विनय, परम विनय! प्रश्नकर्ता : विवेक, विनय, यह सब क्या चीज है?
दादाश्री : किसी के घर पर जाते है तो विवेक से अच्छा बोलते है, 'आईये, बैठिये'। यह कहते है, उसे विवेक बोला जाता है। बूरी चीज को जानने की, अच्छी चीज को जानने की, उसका सदविवेक करके अच्छी चीज को अपने काम में ले लेने की और बूरी चीज को छोड़ देने की, इसको सद्विवेक बोला जाता है। इससे आगे का क्या जानने का है? इससे आगे विनय है। विनय से आगे परम विनय है। मोक्ष में जाने के लिए विनय करने का है। संसारी कोई चीज की इच्छा नहीं, वहाँ विवेक करना वो विनय बोला जाता है और वहाँ परम विनय करे
प्रश्नकर्ता : लेकिन 'ज्ञानी पुरुष' हरेक आदमी नहीं हो सकता?
दादाश्री : हाँ, वो 'ज्ञानी पुरुष' तो कोई दफे एक ही आदमी होता है। 'ज्ञानी पुरुष' ने मोक्ष प्राप्त किया है और दूसरों को मोक्ष प्राप्त करवाते है। वो खुद तो मुक्त हो गये है और दूसरों को इस पझल में से छुड़वाते है।
प्रश्नकर्ता : जिसको ईश्वरप्राप्ति हो गई है, ऐसे 'ज्ञानी पुरुष' के लक्षण क्या है?
दादाश्री : वो 'ज्ञानी पुरुष' को आप लक्षण से पहचान नहीं सकते है। वो तो झवेरी का काम है। आप झवेरी नहीं हो गये है। जो झवेरी है, वो ये डायमन्ड की क्या किंमत है, ये समझ सकता है। दसरा कोई नहीं समझेगा। 'ज्ञानी पुरुष' की दूसरी परीक्षा है; वो जो वाणी बोलते है, वो वाणी कैसी बोलते है, वो देखने का है। जिसमें क्रोध, मान, माया, लोभ नहीं होता। दूसरी तो कोई परीक्षा के लिए आपकी शक्ति नहीं है।