________________
समर्पण
अहो! अहो!! यह अक्रममार्गी आप्तवाणी। तेजपूंज प्रगटाती, अज्ञान नाशकारीणी। हजारों का अंतरदाह छूडाते, प्रगट मोक्षदानी। अहो! कुदरती बलिहारी, परमाश्चर्य होनी।
हमारी हिन्दी दादाश्री : हमारी हिन्दी बराबर ठीक नहीं है न?
प्रश्नकर्ता : नहीं, ऐसी बात नहीं है। आप हिन्दी अच्छी ही बोल रहे है।
दादाश्री : हमको हिन्दी बोलने को नहीं आता।
प्रश्नकर्ता : नहीं, आपकी हिन्दी बहुत मीठी है, आप बोलिये।
दादाश्री : मीठी तो मेरी वाणी है, हिन्दी नहीं। मेरी वाणी मीठी है।
आप्तपुरुष श्रीमुख से निकली आप्तवाणी। हृदपस्पर्शीणी अनंत संसार विनाशीनी। स्याद्वाद अनेकांत निजपद की ही वाणी। सर्वनय सदा स्वीकार्य, मोक्षार्थ प्रमाणी।
आपको मेरी बात समज में आती है न? ऐसा है कि हमारा हिन्दी Language पे काबु नहीं है, खाली समझने के लिए बोलते है। 5 % हिन्दी है और 95 % दूसरी सब mixture है, मगर tea जब बनेगी, तब tea अच्छी हो जायेगी।
संसार, मोक्षपथ पर परम विश्वासनीया। अनादि अंधेरे में प्रगट प्रत्यक्ष दिया। विज्ञानी वीतरागी वाणी, वचनसिद्धता। कारूण्य भाव से जगकल्याणार्थे समर्पिता।
- परम पूज्य दादा भगवान