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ज्ञानी पुरुष की पहचान
कि कौन सी दो रकम के मल्टीप्लीकेशन से ये 96 आया? और उसकी रीत बता दो, तो हो सकता है कि नहीं? दो रकम चाहिये, वो कोई भी हो 12 into 8, or 16 into 6. कोई भी दो रकम चाहिये।
एक आदमी हमको बोलने लगा कि 'क्या अक्रम विज्ञान, अक्रम विज्ञान करते हो? क्रमिक मार्ग क्या गलत है कि ये अक्रम मार्ग निकाला ?' तो मैंने कहा कि 'क्यों? आपको आपकी औरत के साथ झगड़ा हो गया है ? देखिये, आप हमारे पास आओ तो आपको समझाऊँ।' तो बोलने लगा कि 'आपकी क्या रीत है?' मैंने बोल दिया कि 'suppose hundred ( मानो कि १०० ), तो जवाब आता है के नहीं?' तो वह बोलने लगा कि 'हम सपोझ १०३ बोलेगा।' तो मैंने बोल दिया कि 'कोई भी रकम सपोझ करो। जवाब आता है के नहीं? वो मेथेमेटीक्स में होता है न? सपोझ करके रक़म ली, वो भी जवाब आयेगा कि नहीं?'
प्रश्नकर्ता आता है।
दादाश्री : तो फिर इसमें क्यों नहीं आयेगा? ये भी गणित ही है। और इसका जवाब भी है।
ये सब हम आपको रूपरेखा देते है। सब बात बता देने से कोई फ़ायदा नहीं। हम रूट कोझ बता देंगे। हमारी बात समझ में आती है न?
प्रश्नकर्ता: हाँ।
दादाश्री : हमारी हिन्दी बरोबर ठीक नहीं है न?
प्रश्नकर्ता: नहीं, ऐसी बात नहीं है। आप हिन्दी अच्छी ही बोल
रहे है।
दादाश्री : हमको हिन्दी बोलने को नहीं आता।
प्रश्नकर्ता: नहीं, आपकी हिन्दी बहुत मीठी है, आप बोलिये। दादाश्री : मीठी तो मेरी वाणी है, हिन्दी नहीं। मेरी वाणी मीठी है।
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ज्ञानी पुरुष की पहचान
गुरु और ज्ञानी !
प्रश्नकर्ता: हमारे गुरु है, वो ही मेरे इष्टदेव है, मेरे रोम रोम में वो ही है, मैं उनसे दूर न हो जाऊँ, ऐसा कुछ हमें कर दो।
दादाश्री : वो ही करने का है, कुछ जुदा होने की जरूरत ही नहीं है। जुदा होंगे तो आपका जो व्यवहार है न, वो सब खतम हो जायेगा । उनके आधार पर व्यवहार रहा है। हाँ, तो जुदा होने का ही नहीं है। उनकी आराधना करनी है।
प्रश्नकर्ता : आपके पास से ये ज्ञानप्राप्ति करना और मेरे गुरू की आराधना चालु रखनी है, वो एक साथ दो चीजें कैसे रह सकेंगी?
दादाश्री : ये मोक्ष के लिए चाहिये और वो गुरु तो व्यवहार के लिए चाहिये । व्यवहार भी तो चलना चाहिये न?
प्रश्नकर्ता : मेरे गुरू तो मोक्ष के लिए ही है।
दादाश्री : नहीं, नहीं। गुरु सब व्यवहार के लिए ही होते है। मोक्ष के लिए तो 'ज्ञानी पुरुष' होते है।
प्रश्नकर्ता: व्यवहार के लिए तो देवी-देवताओं की उपासना करते है और मोक्ष के लिए गुरु है न?
दादाश्री : नहीं, गुरु हो वो भी व्यवहार ही है। सब व्यवहार ही
है।
प्रश्नकर्ता : हमारे गुरु की मूर्ति का ध्यान करता हूँ तो जब वहाँ ध्यान ठीक, करेक्ट हो जाता है, तब हमको ऐसे मन में लाईट लाईट हो जाती है, वो क्या है?
दादाश्री : वो सब बहुत चीजें होती है। तरह तरह की लाईट होती है लेकिन वो सब पुद्गल है और वो सब तुम्हारी एकाग्रता के लिए फ़ायदेमंद है और आगे जाने के लिए फ़ायदेमंद है। लेकिन वहाँ सच्ची बात