________________
दान
दान
पूँजी। पर आप और आपके बच्चों ने खाया, वह सब आपकी जमा पूँजी नहीं है। वह सब गटर में गया। फिर भी गटर में जाता बंद कर नहीं सकते, क्योंकि वह तो अनिवार्य है। इसलिए कोई छुटकारा है? पर साथ-साथ समझना चाहिए कि औरों के लिए नहीं खर्च हुआ, वह सब गटर में ही जाता
मनुष्यों को न खिलाओ और आख़िर कौए को खिलाओ, चिड़ियों को खिलाओ, सबको खिलाओ तो वह परायों के लिए खर्च किया हुआ माना जाएगा। मनुष्यों की थाली की क़ीमत तो बहत बढ़ गई है न? चिडियों की थाली की क़ीमत खास नहीं है न? तब जमा भी उतना कम ही होगा न?
तो इस बवंडर का ऐसा है। लक्ष्मी को यदि रोकोगे तो नहीं आएगी। होगी उतनी भरी की भरी रहेगी। और इस ओर से जाने दोगे तो दूसरी ओर से आया करेगी। यदि रोककर रखोगे तो उतनी की उतनी रहेगी। लक्ष्मी का भी काम ऐसा ही है। अब किस रस्ते जाने देना. वह आपकी मरजी पर आधारित है कि बीवी-बच्चों के मौज-मज़े के लिए जाने देना या कीर्ति के लिए जाने देना या ज्ञानदान के लिए जाने देना या अन्नदान के लिए जाने देना? किस के लिए जाने देना वह आप पर है, पर जाने दोगे तो दूसरा आएगा। जाने नहीं दे, उसका क्या हो? जाने दें तो दूसरा नहीं आता? हाँ, आता है।
बदले हुए प्रवाह की दिशाएँ कितने प्रकार के दान हैं, यह जानते हो आप? चार प्रकार दान के हैं। देखो! एक आहारदान, दूसरा औषधदान, तीसरा ज्ञानदान और चौथा अभयदान।
मन बिगड़े हैं, इसलिए... प्रश्नकर्ता : मैं कुछ समय तक अपनी कमाई में से तीस प्रतिशत धार्मिक काम में देता था, पर वह सब रुक गया है। जो-जो देता था, वह अब दे नहीं सकता।
दादाश्री : वह तो आपको करना है, तो दो वर्ष बाद भी आएगा ही। वहाँ कोई कमी नहीं है. वहाँ तो ढेर सारा है। आपके मन बिगड़े हुए हों, तो क्या हो?
आए तो दें या दें तो आए? एक आदमी के यहाँ बंगले में बैठे थे और बवंडर आया। इसलिए दरवाजे खड़खड़-खड़खड़ होने लगे। उसने मुझसे कहा, 'यह बवंडर आया है। दरवाजे सब बंद कर दूं?' मैंने कहा, 'सब दरवाजे बंद मत करना, अंदर प्रवेश करने का एक दरवाजा खुला रख और बाहर निकलने के दरवाजे बंद कर दे, फिर अंदर हवा आए कितनी? भरी हुई खाली हो, तब हवा अंदर आए न? नहीं तो बवंडर चाहे जैसा हो अंदर आएगा नहीं।' फिर उसे अनुभव करवाया। तब मुझे कहता है, 'अब, अंदर नहीं आता।'
पहला आहारदान पहले प्रकार का जो दान है वह अन्नदान । इस दान के लिए तो ऐसा कहा है कि भाई यहाँ कोई मनुष्य हमारे घर आया हो और कहे, 'मुझे कुछ दो, मैं भूखा हूँ।' तब कहें, 'बैठ जा, यहाँ खाने। मैं तुझे परोसता हूँ', वह आहारदान । तब अक्कलवाले क्या कहते हैं? इस तगड़े को अभी खिलाओगे, फिर शाम को किस तरह खिलाओगे? तब भगवान कहते हैं, 'तू ऐसी अक्कल मत लगाना। इस व्यक्ति ने खिलाया तो वह आज का दिन तो जीएगा। कल फिर उसे जीने के लिए कोई आ मिलेगा। फिर कल का विचार हमें नहीं करना है। आपको दूसरा झैंझट नहीं करना कि कल वह क्या करेगा? वह तो कल उसे मिल जाएगा वापस। आपको इसमें चिंता नहीं करनी कि हमेशा दे पाएँगे या नहीं। आपके यहाँ आया इसलिए आप उसे दो, जो कुछ दे सको वह । आज तो जीवित रहा, बस! फिर कल उसका