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दान
हैं।' मैंने जलदी करने का मना किया उस भाई को।
यानी ऐसे भले आदमी हों न जिन्हें दान देने का समझ में नहीं आता हो, और वह भी पूछे तो उसे बताते हैं। हमें पता है कि यह भोला है। उसे समझ में नहीं आता है तो उसे बताते हैं। बाकी समझदार को तो हमें कहने की जरूरत ही नहीं न! नहीं तो उसे दु:ख होगा। और दुःख हो ऐसा हमें चाहिए नहीं। यहाँ पैसों की ज़रूरत ही नहीं है। सरप्लस हो तब ही देना, क्योंकि ज्ञानदान जैसा कोई दान ही नहीं है जगत् में!
क्योंकि ये ज्ञान की किताबें कोई पढ़े, तो उसमें कितना सारा परिवर्तन हो जाए। इसलिए हों तो देना, नहीं हों, तो अपने यहाँ कोई जरूरत ही नहीं है वहाँ पर!
ये महात्मा क्या हैं, वह मेरे यदि शब्द समझे न, तो वे भगवान जैसे हैं, पर इन महात्माओं को पता नहीं। यह उन्हें चाय-पानी पिलाएँगे, खिलाएँगे, भोजन करवाएँगे, वह सबसे बड़ा यज्ञ कहलाता है। प्रथम कोटि का यज्ञ । चूड़ियाँ बेचकर भोजन कराएँगे न तो भी बहुत अच्छा ! चूड़ियाँ शांति नहीं देंगी। महात्माओं के साथ बैठें तो दानत खोरी नहीं होती। इसलिए इन महात्माओं को तो जितना खिलाया जाए उतना खिलाते रहना। चाय पीलाओगे तो भी बहुत हो गया।
ऐसी समझ देनी पड़ती है एक आदमी मुझ से सलाह पूछ रहा था कि मुझे देना है तो किस प्रकार दूँ? तब मैंने सोचा, इसे पैसे देने की समझ नहीं है। मैंने कहा, 'तेरे पास पैसे हैं?' उसने कहा, 'हाँ' तब मैंने बताया कि 'इस प्रकार देना।' मैं जानूँ कि यह आदमी दिल का बहुत साफ़ है और भोले दिल का है। उसे सच्ची समझ दो।
बात कुछ ऐसी थी कि हम एक सज्जन के यहाँ गए थे। उसने एक आदमी मुझे छोड़ने के लिए भेजा। केवल छोड़ने के लिए ही। उसने डॉक्टर से कहा कि दादाजी को गाड़ी में छोड़ने आप मत जाना, मैं छोड़ आऊँगा।' इस तरह छोड़ने के लिए आए और उसमें बातचीत हुई। वह आदमी मुझसे सलाह माँग रहे थे कि 'मुझे पैसे देने हैं तो कहाँ पर देने, कैसे देने?'"बंगला बनवाया है, तब पैसे तो कमाए होंगे?' फिर तब बोले, 'बंगला बनवाया, सिनेमा थियेटर बनवाया। अभी सवा लाख रुपये तो मेरे गाँव में दान में दिए हैं।' तब मैंने कहा कि 'अधिक कमाए हों, तो एकाध आप्तवाणी छपवा देना।' तुरन्त ही उसने कहा, 'आपके कहने की देर है, यह तो मुझे मालूम ही नहीं था। मुझे कोई समझाता ही नहीं है।' फिर कहता है, 'इस महीने में तुरंत ही छपवा दूंगा।' फिर जाकर पूछने लगा कि कितना खर्च होगा? तब कहा कि 'बीस हज़ार होंगे।' तुरंत ही कहता है कि 'इतनी पुस्तकें मुझे छपवा देनी
सरप्लस का ही दान प्रश्नकर्ता : सरप्लस किसे कहते हैं?
दादाश्री : सरप्लस तो आज आप दो और कल चिंता हो ऐसा खड़ा हो, वह नहीं कहलाता। अभी छह महीनों तक हमें उपाधी होनेवाली नहीं है, ऐसा हमें लगे तो काम करना, नहीं तो करना मत।
जब कि यह काम करोगे तो आपको उपाधी नहीं देखनी पडेगी। ये काम तो अपने आप ही पूर्ण हो जाता है। यह तो भगवान का काम है। जोजो करता है, उनका यों का यों ही बराबर हो जाता है। पर फिर भी मुझे आपको चेतावनी देनी चाहिए। मुझे किस लिए ऐसा कहना चाहिए कि बिना सोचे समझे करना? बिना सोचे-समझे कद पडो ऐसा मैं किस लिए करने को कहूँ? मैं तो आपके हित के लिए चेतावनी देता हूँ कि 'पिछले अवतार में आपने दिया था, इसलिए यह मिलता है अभी, और आज दोगे तो फिर से मिलेगा। यह तो आपका ही ओवरड्राफ्ट है। मुझे कुछ लेना-देना ही नहीं। मैं तो आपसे अच्छी जगह डलवाता हूँ, इतना ही है। पिछले अवतार में