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दान
होते 'शेठ' (सेठ) हो गया है।
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एक मिल के सेठ के यहाँ मैं सेक्रेटरी से बात कर रहा था। | मैंने पूछा कि 'शेठ कब आनेवाले हैं? दूसरे गाँव गए हैं वे?' वह कहता है, 'चार-पाँच दिन लगेंगे।' फिर मुझे कहता है, 'ज़रा मेरी बात सुनिए।' मैंने कहा, 'हाँ, भई ।' तो वह कहता है, 'ऊपर की मात्रा निकाल देने जैसे हैं।' मैंने उसे समझाया कि 'अभी तू तनख्वाह खाता है, तब तक मत बोलना।' बाकी मात्रा निकाल दें तो क्या रह गया शेष ?
प्रश्नकर्ता: 'शठ' रहा।
दादाश्री : फिर भी हम बोल नहीं सकते! ऐसी दशा हुई है। कैसे जगडुशा आदि सब सेठ हुए थे। वे सेठ कहलाते थे।
जैसा भाव, वैसा फल
कईयों को दान नहीं देना हो, मन में नहीं देना हो और वाणी से कहें, मुझे देना है और वर्तन में रखें और दें। पर मन में नहीं देना हो, इसलिए फल नहीं मिलता।
प्रश्नकर्ता: दादाजी, वह क्यों होता है ऐसा?
दादाश्री : एक मनुष्य मन में देता है, उसके पास साधन नहीं उतना और वाणी से बोलता है कि मुझे देना है, पर दिया नहीं जाता। उसका फल •अगले जन्म में मिलता है। क्योंकि वह देने के समान है। भगवान ने स्वीकार किया। आधा लाभ तो हो गया।
मंदिर में जाकर एक मनुष्य ने एक ही रुपया रखा और दूसरे सेठ ने एक हज़ार के नोट अंदर दान में दिए, यह देखकर अपने मन में हुआ कि अरे, मेरे पास होते तो मैं भी देता । वह वहाँ आपका जमा होता है। नहीं है, इसलिए आपसे नहीं दिया जाता। यहाँ तो दिया उसकी क़ीमत नहीं है, भाव की क़ीमत है। वीतरागों का साइन्स है।
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दान
और देनेवाला हो, उसका कब कितना गुना हो जाए। पर वह कैसा ? मन से देना है, वाणी से देना है, वर्तन से देना है, तो उसका फल तो इस दुनिया में क्या न कहें, वह पूछो ! अभी तो सभी कहेंगे, फलाँ भाई के कारण मुझे देना पड़ा, नहीं तो मैं नहीं देता। फलाँ साहिब ने दबाव डाला इसलिए मुझे देना पड़ा। इसलिए वहाँ पर जमा भी वैसा ही होता है, हं। वह तो हमारा मन से, राज़ी - खुशी से दिया हुआ काम का। ऐसा करते हैं लोग क्या ? किसी के दबाव से देते हैं?
प्रश्नकर्ता: हाँ, हाँ।
दादाश्री : अरे, कितने तो रौब जमाने के लिए देते हैं। नाम, खुद की आबरू बढ़ाने के लिए। मन में भीतर ऐसा होता, जाने दो न देने जैसा नहीं है, पर हमारा नाम बुरा दिखेगा, तब ऐसा फल मिलता है। जैसा यह सब चित्रित करते हैं, वैसा फल मिलता है और एक मनुष्य के पास नहीं हो और 'मेरे पास होता तो मैं देता' ऐसा कहे तो कैसा फल मिले?
स्थूल कर्म : सूक्ष्म कर्म
एक सेठ ने पचास हज़ार रुपये दान में दिए। इस पर उनके मित्र ने उनसे पूछा, 'इतने सारे रुपये दे दिए ?' तब सेठ बोले, 'मैं तो एक पैसा भी दूँ वैसा नहीं हूँ। यह तो इस मेयर के दबाव के कारण देने पड़े।' अब इसका फल वहाँ क्या मिलेगा? पचास हज़ार का दान किया वह स्थूल कर्म, तो उसका फल सेठ को यहीं का यहीं मिल जाएगा, लोग वाह-वाह करेंगे, कीर्ति गाएँगे और सेठ ने भीतर सूक्ष्म कर्म में क्या चार्ज किया? तब कहे, 'एक पैसा भी दूँ वैसा नहीं हूँ' उसका फल अगले भव में मिलेगा। तो अगले भव में सेठ पैसा भी दान में दे नहीं सकेंगे। अब ऐसी बारीक बात किसे समझ में आए ?
वहीं दूसरा कोई गरीब हो, उसके पास भी वे ही लोग गए हों दान लेने, तब वह गरीब मनुष्य क्या कहता है कि 'मेरे पास तो अभी पाँच ही