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दान
जैसे आया, वैसे जाता है... यह तो भगवान के नाम पर, धर्म के नाम पर सब चला है !
प्रश्नकर्ता : दान करनेवाला मनुष्य तो ऐसा मानता है कि मैंने श्रद्धा से दिया है। पर जिसे खर्च करना है वह कैसे करता है, उसका हमें क्या पता चले?
दादाश्री : पर वह तो हमारे रुपये खोटे हों तो वे उलटे रास्ते जाएँगे। जितना धन खोटा उतना गलत रास्ते जाता है और अच्छा धन हो, उतना अच्छे रास्ते जाता है।
निहाई की चोरी, सूई का दान प्रश्नकर्ता : कई ऐसा कहते हैं कि दान करे तो देव बनता है, वह सही है?
और उतना तो फल मिला!
प्रश्नकर्ता : पद में एक पंक्ति है न कि 'दाणचोरी करनेवाले सूईदान से छूटने को मथें ।' तो इसमें एक जगह दाणचोरी (गलत तरीके से बहुत सारा धन कमाना) करी और दूसरी जगह दान किया, तो उसने उतना तो प्राप्त किया न? ऐसा कह सकते हैं?
दादाश्री : नहीं, प्राप्ति हुई ऐसा नहीं कहलाता। वह तो नर्क में जाने की निशानी कहलाती है। वह तो नीयतचोर है। दाणचोर ने चोरी करी और सूई का दान किया, इसके बजाय दान नहीं करता हो और सीधा रहे तो भी अच्छा। ऐसा है न कि छह महीने की जेल की सजा अच्छी। बीच में दो दिन बाग़ में ले जाएँ, उसका क्या अर्थ?
दादाश्री : दान करें, फिर भी नर्क में जाएँ, ऐसे भी हैं। क्योंकि दान किसी के दबाव में आकर करते हैं। ऐसा है न कि इस दूधमकाल में दान कर पाएँ ऐसी लक्ष्मी ही नहीं होती है। दूषमकाल में जो लक्ष्मी है, वह तो अघोर कर्तव्यवाली लक्ष्मी है। इसलिए उसका दान दें तो उलटा नुकसान होता है। पर फिर भी हम किसी दुखी मनुष्य को दें, दान करने के बदले उसकी मुश्किल दूर करने के लिए कुछ करें तो अच्छा है। दान तो नाम कमाने के लिए करते हैं, उसका क्या अर्थ? भूखा हो उसे खाना दो, कपड़े नहीं हों तो कपड़ा दो। बाकी, इस काल में दान देने को रुपये कहाँ से लाएँ? वहाँ सबसे अच्छा तो, दान-वान देने की जरूरत नहीं है। अपने विचार अच्छे करो। दान देने को धन कहाँ से लाएँ? सच्चा धन ही नहीं आया न! और सच्चा धन सरप्लस रहता ही नहीं। ये जो बड़े-बड़े दान देते हैं न, वह तो सब खाते के बाहर का, ऊपर का धन आया है, वह है। फिर भी दान जो देते हैं, उनके लिए गलत नहीं है। क्योंकि गलत रास्ते लिया और अच्छे रास्ते दिया, फिर भी बीच में पाप से मुक्त तो हुआ! खेत में बीज बोया गया, इसलिए उगा
यह तो क्या कहना चाहते हैं कि यह सब काला बाजार, दाणचोरी सब किया और बाद में पचास हजार का दान देकर अपना खुद का नाम खराब न दिखे, खुद का नाम न बिगड़े, इसलिए यह दान देते हैं। इसे सूई का दान कहते हैं।
प्रश्नकर्ता : मतलब सात्विक तो आज ऐसे नहीं हैं न?
दादाश्री : संपूर्ण सात्विक की तो आशा रख सकते ही नहीं न! पर यह तो किस के लिए है कि जो बड़े लोग करोड़ों रुपये कमाते हैं और इस
ओर एक लाख रुपये दान में देते हैं। वह किस लिए? नाम खराब नहीं हो इसलिए। इस काल में ही ऐसा सूई का दान चलता है। यह बहुत समझने जैसा है। दूसरे लोग दान देते हैं, उनमें अमुक गृहस्थ होते हैं। साधारण स्थिति के होते हैं। वे लोग दान दें उसमें हर्ज नहीं। यह तो, सूई का दान देकर खुद का नाम बिगड़ने नहीं देते। अपना नाम ढंकने के लिए कपड़े बदल डालते हैं ! सिर्फ दिखावा करने के लिए ऐसे दान देते हैं!
अभी तो धनदान देते हैं या ले लेते हैं? और दान जो होते हैं, वे तो